Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 1
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Ramchandra Khinduka
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प्रति नं० ३. पत्र संख्या २०. साइन ११४६ । लिपि संवत् १=२३, लिपिस्थान जयपुर |
तत्त्वानुसंधान |
के ग्रन्थ
श्री २०६६, बुदि३, विषय-दर्शन | बन्थ के बने वाले भाजकाचार्य श्रीनत् खयंप्रकाशानंद के प्रमुख शिष्य है।
तनुशासन !
सरस्यति। भाषा संस्कृत | पृष्ठ संख्या २२ लाइन १२४५ उच्च | लिपि संवत्
सम्बन्ध में लिखा है कि वे परमहंस परि
तत्वार्थरत्नाकर |
भाषा संस्कृत । २ सेवा १४ ला
वन । १३ व नहीं है। श्री त्रह्मचारी गोतम के पड़ने के लिये ग्रंथ की प्रतिलिपि की गई। संख्या १३ साउन १०||३|| इच-1 प्रथम पृष्ठ नहीं के ।
प्रति०२
११४४|| इञ्च विषय-तत्रों
विता श्री प्रभाचन्द्रदेव | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १०० साइन ११४२
। प्रत्येक छ पर ९१ पंक्तियां तथा प्रति पंक्ति ने ३०-३६ अक्षर रचना संवन १४ ग्रन्थ के अन्त में विस्तृत प्रशस्ति दी हुई है । यह तत्त्वार्थ सूत्र पर एक टीका है
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I
तत्वार्थराजनार्त्तिक 1
पिता श्री भट्टाकलंक देव | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ५०० सहज ११४५ ॥ ञ्च । लिपि संवत् १२ लिपिकार ने जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह का उल्लेख किया है।
तार्थसार
पिता श्री अमृतचन्द्र सूरी । भाषा संस्कृत पत्र संख्या २ साइज १०३॥ इच्च । सम्पूर्ण श्लोक संख्या ७२४. लिपि संवत् १६१५. लिपि संवत् के ऊपर किसी ने बाद में पीला रंग डाल दिया है।
छयासठ
वार्थसार दीपक ।।
चिता भट्टारक श्री सकलकीति । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या ७२ साइज १०|| ५ | लिपिस्थान माधोराजपुरा ( जयपुर ) |