________________ नीति-शिक्षा-संग्रह --------- - - - - - -- ruar वस्ति रोग, बवासीर, रक्तपित्त, अतिसार, योनिरोग, परिश्रम, ग्लानि, गर्भस्राव, इन में सर्वदा हितकारी कहा है। दूध- बालक, बूढ़े घाववाले, कमजोर, भूख या मैथुन से दुर्बल हुए मनुष्य के लिए सदा अत्यन्त लाभदायक है। 46 दूध प्रायः सब रोगों में पथ्य है; किन्तु सन्निपात, नवीन ज्वर, वातरक्त और कुष्ट आदि कई एक रोगों में दूध अहितकर है, यद्यपि नवीन ज्वर में डाक्टर लोग कुनैन के साथ दूध पिला मी देते हैं, तो भी सन्निपात में तो दूध विष के समान है, यह निश्चित सिद्धान्त है, इसी तरह सुजाक रोग की तरुणावस्था में भी दूध हानिकारक है / दूध की लस्सी बना कर पीना गठिया बीमारी का मूल कारण है। 47 गाय के दूध में उक्त सब गुण हैं; किन्तु गाय के वर्ण भेद से गुणों में भी कुछ भेद हो जाता है / काली गाय का दूध-- वायुनाशक और अधिक गुणकारी है / छाल गाय का दूध-- वातहर और पित्तहर होता हैं / सफेद गाय का दूध--कुछ कफ करनेवाला होता है। तत्काल व्याई हुई गाय का दूधत्रिदोषकारी होता है / विना बछड़े की गाय का दूध -- भी तीनों दोषों को उत्पन्न करता है / भैंस का दूध- गुण में कई दर्जे गाय के दूध से मिलता हुधा ही है, लेकिन गाय के दूध की अपेक्षा इसका दूध अधिक मीठा, अधिक गादा, भारी, अधिक वीर्य वर्द्धक,