________________ सेठियांजैनग्रन्थमाला हने वाले चाहे जैसे मैले कुचैले गंदे वर्तनों में दूध दुह लेते हैं, ग्वाले या हलवाई जैसा पानी हाथ लगता है, वैसा ही उस में मिला देते हैं, मक्खी आदि जन्तुओं के गिर जाने की परवाह नहीं करते तथा वे रोगीले पशुओं का भी दूध बेचते रहते हैं, तब हमें पवित्र सुधा समान दृध कैसे मिल सकता है। बाजारू दूध लाभ के बदले अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करता है / ऐसे दूध के बदले किसी उत्तम कुएँ का जल पीना ही लाभदायक है / पहले जमाने में हरएक गृहस्थ के यहां पशु रहते थे, इस से उन्हें शुद्ध दूध घी मठा आदि म्वास्थ्यप्रद चीजें आसानी से मिलती थी, इसलिए वे हृष्ट- पुष्ट, शीर्घकाय, बलवान,बुद्धिमान और वीर्यवान् होते थे। माज कल लोगों का इधर ध्यान न होने में शक्ति और बुद्धि की हानि और रोगों की इद्धि देखी जाती है। 45 भावप्रकाश में दूध के गुण इस प्रकार वर्णन किये हैं कि दूध- मीठा, चिकना वादी और पित्त को नाश करने वाला, दस्तावर, वीर्य को जल्दी पैदा करने वाला, शीतल, सब प्राणियों के अनुकूल, जीवनरूप, पुष्टि करने वाला, बलवर्द्धक, बुद्धि बढ़ाने वाला, अत्यन्त वाजीकरण, (वीर्यवर्द्धक) अवस्था और आयु को स्थिर रखने वाला सायन है,विरेचन वमन और वस्ति में सेवन करने योग्य है तथा तेज बढ़ाने वाला है / जीर्ण ज्वर,मानसिक रोग उन्माद, शोष(खुश्की)मूर्छा, भ्रम, संग्रहणी पीलिया, दाह, प्यास, हृदय- रोग, शूल, उदावत, गोला,