________________ है आज देव हैं, मैं मनुष्य-स्त्री हूँ। जहाँपर मनुष्य की गंध भी देवों के लिए, असह्य है / नमनपूर्वक उनको कहना यद्यपि कनकवती आपके नाम पर मोहित है, अतः आपकी मूर्ति बनाकर आपकी पूजा कर सकती है परंतु इस भव' में आपके साथ मेरा संबंध नहीं बन सकता। निरुतर बने हुए वसुदेव जैसे आये थे वैसे ही चले गये / कुबेर से मिले तथा सब समाचार कह दिये / प्रसन्न होकर देवने कहा वसुदेव आप धन्यवाद के पात्र हो, आपकी सत्यता, निर्भयता और वफादारी पर मुझे अनहद | विश्वास हो चुका है, तदंतर अपने शरीर पर रहे हुए बहुत कुछ आभूषण वसुदेव' को दिये, वस्त्र दिये, सुगंधी पदार्थ भी दिये, जिसको -वसुदेव ने अपने शरीर पर धारण किया तब उनकी शोभा द्विगुणित हो गई। कनकवती के पिता हरिश्चंद्र राजा को जब मालूम हुआ कि, - मेरी पुत्री के स्वयंवर को देखने के लिए कुबेर देव पधारे हुए हैं, तब खुशी का मारा राजा उद्यान आया और प्रसन्नचित से बोला, जम्बूद्वीप के भारत देश में हीरे, मोती, पन्ने, पुखराज, माणिक्य, नील- मणि, स्फटिक मणि, सुवर्ण, रजत आदि मूल्यवान धातुओं पर आपका प्रभुत्व होने से तथा आप सम्यग्दृष्टि सम्पन्न होने से शुभ तथा शुद्ध अनुष्ठानों में दशदिक्पाल के पाटले पूजनमें आपकी पूजा, जाप आदि होते ही हैं, अतः आप सम्माननीय तथा आदरणीय है, आप इतने बड़े - वैमानिक देव होनेपर भी हमारे यहाँ पधारे हैं उसका हमें गौरव है / उसके पश्चात् स्वयंवर मंडप बनवाने की आज्ञा अच्छे कारागिरों को दी और उन्होंने नयन तथा हृदयरम्य मंडप का निर्माण किया। उससे - कुबेरदेव के योग्य सुवर्णासन रखवाया और भी स्वयंवर में आनेवाले राजा-महाराजाओं के योग्य सिंहासन रखवाये / इन्द्रसभा की तरह अतीव शोभायमान मंडप में कुबेरदेव अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ आये P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust