________________ लूं / इस प्रकार का निर्णय कर नलराजा दीक्षा लेने के कृतनिश्चयी बने। तब नागराज ने अपनी देवमाया से कद्पे शरीर को बदलकर तेजस्वी रुप में देव के समान बने हुए वे नलराजा के सामने उपस्थित होकर बोले, राजन् ! किसी भी प्रकार का दुःख मन में लाने की आवश्यकता नहीं है / मैं तुम्हारा निषध नाम का पिता हूँ। तुम्हे राज्य कारभार सुपर्द कर मैंने दीक्षा ली थी / उसी संयम धर्म के प्रभाव से मैं पांचवें ह्मिदेवलोक में देव बना हूँ / पुत्र ! अरिहंतों के समिति गुप्ति धर्म का यही प्रभाव है कि, चाहे वह दो घड़ी की सामायिक हो अथवा वज्जीव का संयम हो यदि मन-वचन तथा काया की एकाग्रता पूर्वक उसे पाला जाय तो देवयोनि निश्चित है। वहां के आश्चर्योत्पादक भवविलास को प्राप्त करके मुझे बड़ा भारी आश्चर्य हुआ, और तोचने लगा कि, पूर्वरुप में मैंने कौन सा सत्कार्य किया था ? जिससे मनुष्य लोक में सर्वथा अप्राप्य इन विलासों को मैं प्राप्त कर सका हूँ। तव अवधिज्ञान का उपयोग रखा और मालुम हुआ कि, यह सब अरिहंत परमात्माओं से प्ररुपित संयम का प्रभाव है। मुझे आनन्द का पार नहीं रहा, तब मेरे मन वचन काया अरिहंतों के चरण में झुक गये। तदन्तर मेरी ज्ञानदृष्टि तुम्हारे पर पड़ते ही बड़ा दुःख हुआ, साथ-साथ इतना भी जान सका कि बराबर बारह वर्षों की अवधि तक तुम्हें इन दुःखों को भुगतना है / तुम्हारे जैसे न्यायनिष्ठ तथा सत्यवादी के ऊपर इतने लंबे काल तक दुःख क्यों ? ऐसा विचार करने पर तुम्हारे 5-6 भव मेंरे ज्ञान में आते ही समझने में आया कि, एक भव में पत्नी सहित तुमने पंचमहाव्रतधारी, जीवमात्र का कल्याण करनेवाले जिनके दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है, वैसे परमपवित्र मुनिराज को सताया था, अपमान किया था, गंदे शब्दों से उनका तिरस्कार किया था और उनके धर्मध्यान में अन्तराय किया था, जिनके कारण वह पाप इस भव P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust