________________ पूजा, बड़ी पूजा, आरती, मंगलदीप आदि अनुष्ठान किये और अपने मनुष्य जीवन का लहावा लिया। इस प्रकार कितने ही हजारों वर्ष पर्वत राज्यधुरा के भार क वहन करते हुए नलराजा के पास एक दिन देवसुव को भुगतनेवाल निषधदेव (जो नलराजा के पिता था, और संयम पालकर देव बन था) आया और बोला , पुत्र ! अब तुम्हें संयम लेने का अवसर प्राप्त हुआ है, इसलिए गार्हस्थ्य जीवन का मोह छोड़कर दीक्षा लेने की तैयारी की जाय। इतना कहकर देव अन्तर्धान हुआ। जन्म-जन्म के बैरागियों को, पौद्गलिक सुखों का त्याग करने मे भी विलंब नहीं होता है, नलराजा ने तथा दमयंती रानी ने संयम लेने का निर्णय किया / भव्य पुरुषों की भवितव्यता ही सुंदर होने के कारण उसी समय बागवान (माली) ने आकर बधाई दी कि, राजन् ! उद्यान में अवधिज्ञान के मालिक जिनसेन नाम के आचार्य भगवंत अपने मुनि ओं के साथ विहार करते हुए पधारे हैं। नलराजा खुव प्रसन्न हुए और गांव (शहर) को शणगारने का आदेश देकर तथा सामंत, सेठ पुत्र परिवार के साथ राजाजी आचार्य को वन्दन करने पधारे देशना सुनकर दमयंती के साथ दीक्षा लेने की विनंती की. गुरुदेव ने तथास्तु कहा। तत्पश्चात् 'पुष्कल' नामक पुत्र को राज्यगद्दी सोपकर बड़े ठाटबाट से दीक्षा लेने के लिए पधारे शुभमुहुर्त, लग्न, नवांश तथा चन्द्र नाड़ी के समय गुरुजीने दोनों को दीक्षा दी / नल, मुनि-साधु बने / दमयंती साध्वी बनी, उत्कृष्ट भावपूर्वक संयम की साधना की जा रही है / तपश्चर्या का रंग भी जोरदार बना है, क्योंकि नूतन पापों को रोकने के ' लिए तथा पुराने पापों को निर्मूल करने के लिए तपश्चर्या के बिना दूसरा मार्ग नहीं है / संयमिनी साध्वीजी श्री दमयंती की संयम साधना खूब जोरदार रही अतः संयमस्थान शुद्धतम बनते गये, परंतु नल मुनिराज 132 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust