Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 128
________________ सार्थवाह भी खुश होता हुआ उपहार लेकर आया / दुःख के समय दमयंती को आश्रय देनेवाले सेठ का भीमराज ने सत्कार किया। | तदन्तर ऋतुपर्ण राजा, चन्द्रयशा रानीजी, चन्द्रावती तथा तापसपुर नगर के राजा वसंतशेखर भी उपहार लेकर आये, दमयंती ने सभी का परिचय दिया भीमराजा अतीव प्रसन्न हुए और बहुत दिनों तक उनका आतिथ्य किया / एक दिन राजदरबार में सूर्य की तरह तेजस्वी देव आया और दमयंती को जयजिनेन्द्र पूर्वक नमन कर बोला, मैं तापसपति विमलपति था / तुम्हारे उपदेश तथा आदेश से मैंने दीक्षा ली थी, तथा .. निरतिचार उसका पालन कर सौधर्म नामक पहले देवलोक में देव बना हूँ। देवी ! तुमने मुझे अरिहंत परमात्मा के धर्म की पहचान तथा परिचय कराया और मैं जैनधर्म में स्थिर बना, जिससे मैं देवयोनि प्राप्त कर सका हुँ, अन्यथा यज्ञयाग में हजारों मूक पशुओं को होमने-- वाले मेरे जैसे मिथ्यात्वी की दशा कौन-सी होती ? देवलोक के सुखों को ठुकराकर भी तुम्हारा उपकार प्रथम मानना मेरा कर्तव्य है। इतना कहकर प्रत्युपकार के रुप में सात करोड़ सूवर्णमुद्रा की वृष्टि कर वह अपने स्थान गया / भीम आदि बड़े-बड़े राजा महाराजाओ ने नलराजा का दक्षिणार्धाधि पति स्वरुप में राज्यभिषेक किया, और उनकी आज्ञा शिरोधार्य की / मेघों का घटाटोप दूर हो जाने के वाद जैसे सूर्यनारायण द्विगुणित तेजस्वी बनता है, उसी प्रकार नलराजा तथा दमयंती का प्रभाव भी द्विगुणित हुआ और राज्यव्यवस्था व्यवस्थित वनी / दाम्पत्यजीवन का रस भी बढ़ा और साथ-साथ अहिंसा, संयम तथा तपोधर्म की उपासना भी बढ़ी तथा देश में जिस प्रकार से भी बना उसी प्रकार / अहिंसा धर्म का प्रचार किया प्रजा ने सुख-शांति तथा समाधि की श्वास लिया / अन्याय, प्रपंच, डाका, मारकाट, चोरी वदमाशी के मार्ग / बंदं हुए। ___एक दिन अतुल पराक्रमी नलराजा ने अपनी चतुरंगिणी सेना को / तैयार की और अपनी पैतृकी राजधानी पर चढ़ाई करने के इरादे से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust III

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