Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 126
________________ को आज्ञा दी और उसे लेकर भीमराज अपने महल में आये / दरवार में दमयंती को अपने पिता के पास बैठो देखकर प्रसन्न हुआ कुब्ज मनोमप परमदयालु अरिहंत परमात्मा का उपकार मानने लगा और भावपूर्वक परमात्मा को नमस्कार किया। भीमराज ने रसोई का सव सामान कुब्ज को दिया, और दमयंती भी उसकी सब चेष्टाएँ बड़ी सूक्ष्मता से देखने लगी / रसवती तैयार हुई और सबों ने उसका आस्वादन किया / भोजनान्तर दमयंती खुश हुई / दधिपर्ण राजा को भी खुश होना स्वाभाविक था, क्योंकि आज उसकी आंखों में कामदेव का नशा अपना प्रभाव बतला रहा था / शास्त्रकारोंने कहा कि, इन्सान की दृष्टि में जिस प्रकार का रंग लगता है, सृष्टि भी उसके लिए वैसी बन जाती है, आंख पर पीले रंग के चश्मेवाले को सृष्टि भी वैसी ही दिखती है। जव काले रंगवाले को काली दिखती है, परंतु संसार न तो पीला है न काला उसी प्रकार इन्सान के असंस्कृत मन में जव कामदेव का नशा आता है, तब स्त्रीमात्र उसके वास्ते दर्शनीय बनती है और वैराग्य का नशा जब आता है तव वही स्त्री आदर्शनीय बन जाती है, इन सब प्रसंगों में इन्सान का संस्कृत तथा असंकृत मन ही मन काम कर रहा है। स्त्री चाहे करोडाधिपति की हो, भिखारन हो, काले गोरे रंग की हो, उसके शरीर की रचना में रतिमात्र अन्तर नहीं है। हाड, सांस, मूत्र, मल, कफ, पित्त, रुधिर आदि अत्यंत गंदे पदार्थों से पूर्ण स्त्री के शरीर पर मोहांध वनकर अपनी धर्मपत्नी का द्रोह करना निंदनीय कर्तव्य है। नलराजा चाहे जीवित हो या अजीवित, तथापि दूसरे पुरुष की छांया में दमयंती खड़ी भी नहीं रह सकती है तो उसके पुनर्विवाह की बात सर्वथा अनुचित है, इस तथ्य को भी दधिपर्ण राजा ख्याल में नहीं रख सका। सह भोजनान्तर दमयंती सपने पिताजी से बोली कि, एक दिन ज्ञानी गुरु ने कहा था कि, इस समय के भारत देश में नलराजा के सिवाय सूर्यपाक रसवती का ज्ञाता कोई भी नहीं है। अतः वर्तमान समय में 127 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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