________________ यह कुब्ज शरीर की दुर्दर्शनीय अवस्था भले भुगत रहा हो तथापि नलराजा ही है / पूज्य पिताजी ! इसके अलावा भी इसकी परीक्षा इस प्रकार हो सकती है, यदि यह कुब्ज नलराजा रहा तो उसकी एक अंगुली के स्पर्श मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जायेंगे क्योंकि हृदयगत प्रेमरस का यही महत्व है कि, सती स्त्री अपने पति के स्पर्श से रोमांचित होती है अन्यथा दूसरे का स्पर्श चाहे कितना भी हो तो भी सती को कुछ भी नहीं होता है / कितनी ही औरतों को चूड़ियां पहनानेवाला चूड़िधर चाहे किसी भी प्रकार से स्त्री का हाथ उचा नीचा करे तो भी उसके मुंह से सित्कार नहीं निकलता है, तभी तो कहा जाता है / हाथ मरोड़े चुड़िया तीडेरे मूर्ख मणियार / - अपने पति के कर विना कभी न करूँ सीत्कार / / उपरोक्त कारण से आप मेरा मानकर कुब्ज की अंगुली का मेरे शरीर से स्पर्श होने दीजियेगा। दमयंती की बात मानकर राजाजी के सवि' नय कथन से कुब्जने दमयंती के शयीर का स्पर्श किया और उसे अद्वैताननन्द होने के बाद पूर्णरुप से निश्चित हो गया कि, नलराजा का रुपान्तर ही कुव्ज है / तत्पश्चात दमयंती ने सविनय कहा कि, वनवास के समय वटवृक्ष के नीचे भरनिद्रा में पड़ी हुई मुझे त्याग कर आप पलायन हो गये थे,अब कहियेगा कि, यहां से आपका छुटकारा कैसे हो सकेगा ? अतः आप अपना असली स्वरुप प्रकट कीजियेगा क्योंकि बारह वर्ष की अवधि पूर्ण हो चुकी है / समयज्ञ कुब्ज ने भी देव के कथनानुसार अपने पास गुप्त रखे हुए श्रीफल को तोड़ा उसमें से प्राप्त हुए दिव्य वस्त्रों का तथा मंजुषा में से दिव्याभूषण का परिधान करते ही नलराजा अपने असली स्वरुप में आ गये अपने पति को प्राप्त कर प्रसन्न हुई दमयंती नलराजा से आलिंगित हुई। भीमराजा आदि को मालूम हुआ और आनन्दित बनकर उनका स्वागत किया। दधिपर्ण राजा ने अपने मानसिक गंदे भावों की माफी मांगी, सर्वत्र जयजयकार हुआ। धनदेव 128 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust