________________ जानते ही हो कि नलराजा अब कथा शेष है, इसलिए दमयंती का पुनः स्वयंवरण कल का होने से मेरा जाना कैसे होगा ? और गये बिना भी चलता नहीं है क्योंकि दमयंती को धर्मपत्नी वनाना यह भी जीवन का आनन्द है। 1 मजाक, कुतूहल तथा असलियत को जानने में उत्साहित बने हुए कुब्ज ने कहा 'राजन् !' जव तक मेरे श्वासोश्वास चालू है तब तक आप किसी भी बात की चिंता न करे, मैं आपको थोड़े समय में ही कुँडिनपुर नगर की सीमा में पहुंचा सकने में पूर्ण समर्थ हूँ, केवल अश्वपाला में से दो घोड़े पसन्द कर मुखे समर्पित कीजियेगा। राजाने कहा, भैया !' तुम ही वहां पर जाकर अपनी पसन्दगी के घोड़ों को ले नाईए / कुन्ज अश्वशाला में गया और दो घोड़ों को पसंद कर बाहर लाये, और रथ में योजित किये / इस प्रकार के विरोचित कार्य को देखकर कुब्ज के बारे में पुनः शंकित हुए राजा ने सोचा कि, यह इन्सान देखने में भले ही कुब्जाकार है, परंतु इसकी आत्मा देव या विद्याधर की है अन्यथा तुफानी घोड़ों को भी वश में कर लेना वच्चों का खेल नही है। रथ को तैयारकर लेने के पश्चात कुब्ज बोला, 'राजाजी !' अव आप अविलंव रथ में बिराजिये जिससे मैं पवनवेग की गति से कुंडिनपुर नगर में पहुँचा दूं / राजाजी ने स्नान किया, मूल्यवान वेशपरिधान किया, हीरे मोती के आभूषणों से शरीर को सजाया समयसमय पर तैयार किये हुए पान को.देनेवाले आदमी को तथा छड़िदार और छत्रधारी आदमी को साथ में लिया और रथ पर आरुढ हुए। कुब्ज ने घोड़ों के शरीर पर प्यार से हाथ घुमाया और लगाम हाथ में ली, एडी लगाई और विमान से भी तेजगति वाले घोड़े पवन के तुल्य दौड़ने लगे। / परस्त्री के साथ पाणिग्रहण करने की चाहनेवाले इस राजा का लाल दुपट्टा हवा की तेजी में फर-फर करता हुआ, परस्त्री की आंख 123 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust