Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 123
________________ वस्तुतः बह कुब्ज यदि नलराजा ही होंगे तो स्वयंवर की बात सुनते ही उत्साहित होकर आयेंगे अतः आज चैत्र सुदि 3 है और स्वयंवर का मुहर्त पंचमी दिन का रखा जाय जिससे इतने लंबे मार्ग को कुछ ही घंटों में पार करना दधिपर्ण के वश की बात नहीं है, दूसरी बात यह है कि, अश्वों के हृदय को जानने में नलराजा ही समर्थ है इसलिए कुब्ज को साथ में लाना अनिवार्य है। भीमराजा की वात को दमयंती ने मान्य रखी और तत्काल ही दूत को सुसुमारपुर नगर को भेज दिया। सभा के बीच दूत ने कहा कि 'राजन् !' मेरी वृद्धावस्था होने के कारण ही मुझे आने में विलंब हुआ है, तो क्षमा करे हमारे राजाजी ने चैत्र सुदि 5 के दमयंती का स्वयंवर रखा है अतः आप जरुर पधारे / दूत की बात सुनकर राजा ने पूछा कि, कौन सा कारण है, जिससे दमयंती का स्वयंवर फिर से रखा गया है ? क्या नलराजा दिवंगत हुए हैं ? या और कुछ बनने पाया है। दूत ने कहा, 'प्रभो !' मुझे ज्यादा तो मालूम नहीं है, परंतु आपका अनुमान सत्य हो सकता है। राजा के पास आसीन हुए कुब्ज ने भी स्वयंवर की बातें सुनी और मनोमन खुश भी हुए क्योंकि जबतक मैं जीवित हूँ तबतक दमयंती दूसरे पुरुष को स्वप्न में भी नहीं ला सकती तथा मेरे मरजाने के बाद भी दूसरे से विवाहित बने यह असंभव है इससे मालूम होता है कि, स्वयंवर की कल्पना कृत्रिम है, केवल मेरी तपास करने का यह प्रपंच है। कुंडिनपुर यहां से 100 योजन की दूरी पर होने से चंद समय में वहां पर कैसे जाना ? इस चिंता के मारे दधिपर्ण राजा हाथ में मुंह रखकर उदासीन बैठे थे, तब कुब्ज ने पूछा, राजन् ! आपको ऐसी कौनसी चिंता सता रही है, जिससे अन्यमनस्क होकर आप गहरे चिंतन में डूब गये हैं ? तो सूचित कीजियेगा जिससे आप के नमक को खानेवाला मैं आपको चिंता मुक्त करने में सहायक बन सकुँ / तव राजाजी बोले, 'कुब्ज !' तुम 12P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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