Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 122
________________ हो जाने पर रोते हुए कुब्ज ने कहा कि, विप्र !' आज तुमने जो नल. दमयंती का सुन्दरतम आख्यान कहा है अतः मुझे बड़ा भारी आनन्द हो रहा है तो आप कुछ समय के लिए मेरे स्थान पर पधारे जिससे मैं आपका स्वागत कर सकू, इतना कह कर कुव्ज खड़ा हुआ और दूत भी उसके पीछे चला और उतारे पर आये स्नान भोजन करवा कर उस कुब्ज ने दधिपर्ण राजा के दिये हुए वस्त्र आभूषण तथा लाखों रुपये उस ब्राह्मण दूत को बक्षिस में दिये और वह प्रसन्न होकर सीधा अपने देश तरफ आया, भीमराज से मिला सब वृतांत तथा कुब्ज के दिये हए वस्त्रादि को बतलाकर मौन हो गया / दान में मिले हुए पदार्थो को देखकर राजा प्रसन्न हुआ तथा दमयंती ज्यादा प्रसन्न होकर बोली, पताजी! चाहे तो आहार का दोष हो या कर्मों का दोष हो जिससे नलराजा कुब्ज बन गये हैं, क्योंकि हाथी को वश में करना, लाखों रुपयों का सर्वस्व दान देना तथा सूर्यपाक रसवती बनाना आदि कार्य आपके जमाई राज के सिवाय दूसरे किसी का हो नहीं सकता है / तथा नल ने किसी को भी सूर्यपाक का ज्ञान दिया हो वह सर्वथा अविश्वसनीय है। इसलिए आपसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि किसी भी उपाय से उस कुब्ज को यहां पर बुलवा लीजियेगा जिससे मैं स्वयं उसकी परीक्षा कर सकेंगी / दमयंती की तथ्य तथा स्वीकार्य बात सुनकर प्रसन्नचित राजाजी ने कहा 'बेटी' कृतकर्मों का भुगतान चित्र विचित्र होने से तेरी वातें संभावित हो सकती है जिससे इन्सान मात्र का रुप. रंग स्वभाव तथा चाल चलन में आकाश पाताल का अंतर बन सकता है / दूसरी बात यह है कि, तुम्हारे वियोग के बारह वर्ष भी पूर्ण होने आ रहे हैं / सूर्यपाकादि, अद्वितीय कार्यों से मुझे भी अनुमानित होता है कि, वह कुब्ज नलराजा हो सकता है, अतः मैं सोच रहा हूँ कि, तेरे स्वयंवर का कल्पित बहाना लेकर दधिपर्ण राजा को आमंत्रित किया जाय क्योंकि - तेरे पर वह पहले ही से लुब्ध था, इसलिए स्वयंवर का नाम सुनकर - वह जरुर आयेगा / तथा कुब्ज को भी साथ में लाये बिना रहेगा नहीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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