Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 120
________________ होनहार के आगे मैं कर भी क्या सकता था। शठ, मायावी तथा विश्वासघाती कूबर के पास जाने की अपेक्षा भीख मांगकर खाना ज्यादा अच्छा है, इतना विचार करने के बाद मैं जंगल में आगे बढ़ा और आप श्रीमान के शरण में भाग्यवश में उपस्थित हुआ / कुब्ज की ये वाते सुनकर दधिपर्ण राजा को बड़ा भारी दुःख हुआ, प्रेतकार्य सम्पन्न कर, श्रद्धांजली को अर्पित की। एक दिन दधिपर्ण राजा ने अपने राजदूत को कार्यवश भीमराजा के पास भेजा / सस्वागत सुखपृच्छा पूर्वक आने का कारण पूछा तथा और भी कोई नूतन समाचार हो तो सुनाओ। तब दूत ने नलराजा के नास रहे हुये रसोईए का जिक्र किया, विशेष में इतना भी कहा कि, वह सूर्यपाक भोजन बनाने में बड़ा भारी काविल है / दमयंती जो अपने पिता के पास आसीन थी उसने कहा, 'पूज्य पिताजी !' इस संसार में सूर्यपाक अर्थात सूर्य के मंत्रजाप से धूप में रखे हुए चावल, दुध आदि पदार्थों को पकाने का कार्य आपके जमाई (नलराजा) को छोड़कर दूसरा कोई भी जानता नहीं है, अतः आप किसी होशियार दूत को वहां पर भिजवाकर उनका तपास करवाये कि, वह कुब्ज कौन है ? कदाच आपके जमाई ने ही अपना छद्मवेश बना लिया हो ? दमयंती की बात सुनकर भीमराजाने अपने कुशल नाम के वृद्ध दूत को बुलाया और सब वातें समझाकर दधिपर्ण राजा के यहां भेजा और कहा कि, कुब्ज के साथ सावधानी से बात कर जानने का प्रयत्न करना कि वस्तुत: वह कौन है ? दूत ने आदेश स्वीकार किया और अच्छे शकुनों को लेकर सुसुमारपुर नगर तरफ प्रस्थान किया। राजा से मिलकर कुब्ज से मिला, सूक्ष्म दृष्टि से देखा , लंबे समय तक उसकी चेष्टाएँ जानने का प्रयत्न किया, परंतु वह कुछ भी निर्णय करने में समर्थ नहीं बना कि, इस कुब्ज का यह रुप स्वाभाविक है या बनावटी ? तब उसे बड़ा विषाद हुआ और सोचने लगा कि, रुप-रंग का सागर नल कहां ? और . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Trust 119 Jun Gun Aaradhak Trust

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