Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 118
________________ जाकर पूछा कि, 'हे कुब्ज !' जिस रसवती को तुमने तैयार की उसे नलराजा के सिवाय दूसरा कोई भी जानता नहीं है, क्योंकि मैं उनकी सेवा में रहा हुआ होने से उनके हाथ की रसवती को मैंने बहुत सी बार खाया है, इससे अनुमान लगता है कि, कुब्ज के रुप में तुम कदाच नलराजा हो अथवा देवों के रुप का भी तिरस्कार करनेवाला तथा अद्वितीय पराक्रमी नलराजा को इसप्रकार का रुपांतर करने का प्रयोजन भी महसूस नहीं होता है। कदाच कुतुहलवश रुपांतर कर ले तो भी उनका एकाकी आना संभवित नहीं है / मैंने कितनी दफे नलराजा को तथा उसके वैभव और पराक्रम को प्रत्यक्ष किया है। इस प्रकार पूछने पर भी कुब्ज ने प्रत्युत्तर नहीं दिया / तदन्तर दधिपर्ण राजाने कुब्ज को सुन्दर वस्त्र, आभूषण, एक लाख सुवर्ण मोहरें तथा पाँचसौ गांव वक्षीस में दिये, परंतु कुब्ज ने गांवों के अतिरिक्त शेष ग्रहण किया, राजाजी को बड़ा भारी आश्चर्य इसलिए हुआ कि, इन्सान एक इंच जमीन के खातिर भी लड़ पड़ता है, जब यह कुब्ज इतनी बड़ी जागीर को ग्रहण भी नहीं करता है, शायद ! पांचसौ गांव कम पड़ने होंगे ? अतः राजा ने कहा कि, 'कुब्ज!' तुम्हारे उपकार के बदले में मैं पांचसौ गांव तुम्हें दे रहा हूँ जिसके जागिरदार वनकर श्वासपर्यन्त मौज करो फिरभी लेने से इन्कार क्यों कर रहे हो? क्या इससे भी ज्यादा चाहिए ? या और कुछ मांगना हो तो भी मांग सकते हो ? कुब्ज ने कहा, राजन् ? यदि प्रसन्नता पूर्वक यह वरदान हो तो कृपया में जो भी मांगु उसे दीजियेगा। राजा ने बात को मान्य रखी / तब कुब्ज ने कहा राजन् ! मेरी याचना है कि, आप अपने राज्य की सीमा पर्यन्त शराबपान, मांसाहार, शिकार व जुगार आदि पर प्रतिबंध करवाने की आज्ञा प्रसारित करे जिससे मेरी सेवा का फलितार्थ मुझे प्राप्त होगा। * राजन् ! किसी भी देश की प्रजा, व्यापारी, महिलाएँ तथा वानप्रस्थी और साधु संस्था की रक्षा, राजाओं, सैनिकों तथा राज्यकर्मचारी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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