Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 119
________________ पर रही हुई होने से उनको उपरोक्त दूषणों से दूर रहना ही राजधर्म है / अपने कर्तव्य धर्म को सच्चाईपूर्वक पूर्ण करना ही ईश्वर के आशीर्वाद प्राप्त करने का लक्षण है, राजाजी! आलिशान किमती पत्थरों से निर्मित मंदिर में चाहे सुवर्ण, हीरा तथा चांदी की मूर्ति हो तो भी उनकी भक्ति, पूजा तथा आराधना का फल यही है कि, मानव मात्र परमात्माओं की आज्ञा अपने जीवन में उतारकर सच्चे अर्थ में इन्सान बनने पावे / शरावपान करने में ईश्वर की आज्ञा हरहालत में भी नहीं है, बल्कि शाप है, महाशाप है, अतः आप श्रीमान अपने राज्य की सीमा तक, दुर्गति, दुःख, दारिद्रय तथा आधिव्याधि और उपाधि को देने वाले तथा बढाने वाले शराब पर प्रतिबंध लगाकर संसार भर में होनेवाले पापकर्म तथा असत्कर्मों के मौलिक कारण को ही. समाप्त करने का यश प्राप्त करें / कुब्ज की बातें सुनकर राजा, मंत्रीयों तथा शेठ-साहुकारों की खुशी का पार न रहा / उसी समय राजाजी ने अपनी सीमा तक शराब, जुगार तथा शिकार पर प्रतिबंध की आज्ञा प्रसारित करवा दी। ___ एक दिन दधिपर्ण राजा ने कुब्ज से साग्रह पूछा कि, तुम कौन हो ? कहां के रहवासी हो ? पर्यटन करने का कारण क्या ? जवाब देते हुए कुब्ज ने कहा, 'राजन् !' में कौशलदेश के राजाधिराज नल का रसोईया (Cook man) था, हुँडक नाम से मैं जाना जाता था, मेरी चालाकी और वफादारी को देखकर राजाजी ने मुझे बहुत-सी कलाएँ सिखलाई है / परंतु कर्म संयोग की बात है कि, अपने छोटे भाई कूबर के साथ जुआ खेलने में दमयंती सहित सब कुछ हार गये, तब दमयंती को लेकर नलराजा को वनवास स्वीकार करना पड़ा, इतना कहकर कुब्ज को रोना आ गया, वह जोर-जोर से रोया / उसके बाद उसने आगे की बातें कही कि अरण्य में नलराजा जब प्रविष्ट हुए तब अकस्मात ही उनकी मृत्यु हुई मेरे शोक संताप का पार न रहा। परंतु 118 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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