Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 117
________________ कार्य को सैनिको के शस्त्रो ने, मंत्रीओ की बुद्धिने तथा राजा के राजतेज ने भी नहीं किया उसे चंद समय में ही इस कुब्ज ने कर दिखलाया। भगवान जाने / यह कुब्ज है ? या इसके शरीर में कोई देव है ? या पुण्याधिक छद्मवेशी दूसरे देश का कोई राजा है ? क्योकि इसके शरीर को तथा इसकी चाल को देखकर मदोन्मत हाथी को वश में करने का दैवत अनुमानित नहीं होता है। इस प्रकार विचारती हुई प्रजा चुप हो गई और आगे क्या बनता है, उसे देखने तथा सुनने के लिए तैयार बन गई। राजाजी ने मिस्टालाप पूर्वक कहा कि, हे भाग्यवान् तुम्हारे इस शरीर में किसी पुण्यवंत की आत्मा होने में कुछ भी शंका नहीं है,क्योकि इस मूडदाल तथा हास्योत्पादक शरीर में हाथी को वश में करने का शवित का होना असंभव है, फिर भी तुमने जो उपकार हमारे पर किया है, वह आनंदप्रद है / राजाजी ने विवेकपूर्वक पुनः पूला कि, ' हे कुब्ज !' जिस प्रकार इस पशु को तुमने वश में किया है उसी प्रकार की दूसरी कला भी तुम जानते हो क्या ? क्योकि जिस जबरदस्त शक्ति का परिचय तुमने दिया उसी से अनुमान होता है कि और भी अद्वितीय कलाएँ तुम्हारे में हो सकती है, तो कहीयेगा, आप और भी कुछ जानते हैं क्या ? तब मूंछो में हँसते हुए कुब्ज ने कहा राजन् ! सूर्यनारायण के मंत्रजाप से तथा धूप के माध्यम से सूर्यपाक नाम की रसवंती (भोजन) वनाने की कला में अच्छी तरह से जानता हूँ क्या आप उस कला को देखना चाहने हैं ? .. दिव्य रसवती को जीमने का कुतुहली राजा महल में आया और चावल, दूध, शक्कर तथा बर्तन आदि दिये तब कुब्ज ने उन सब द्रव्या को धूप में रखकर सूर्यमंत्र का जाप करने लगा और चंद समय में ही खीर बन गई, तब राजारानी आदि सभी ने उस दिव्यस्वाद संपन्न खीर का भोजन कर अति संतुष्ट हुए। उसे अपने अंगत महल में ले 116 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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