Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 116
________________ कुब्ज बड़ी चालाकी से हाथी के सामने आया। दया भाव से जनता में से आवाज आई, अरे कुब्ज ! दूर हट, विना मौत मत मर, हाथी तुझे चिर डालेगा। परन्तु इन बातों को सुनने के लिए कुब्ज के पास कान नहीं थे। कुब्ज के आकार में ये नलराजा ही थे, अतः कर्मों के उदयकाल को भुगतना सर्वथा अनिवार्य समझकर अपनी शक्ति का परिचय देने के इरादे से गजराज के सन्मुख कुब्ज आ गया, तब उसने अपनी सूंढ को इधर उधर घुमाई और कुब्ज भी उसके सामने कभी इधर लेटा, कभी उचर फिरा, कभी हाथी के पूंछ की तरफ वुमा, इस प्रकार बड़ी चालाकी से हाथी की सूंढ से बचकर उस पशु को चारो तरफ घुमा-घुमाकर थकने जैसी स्थिति में उसको ला दिया। समयज्ञ कुब्ज ने उसकी पूंछ को जोर से पकड़ ली और इधर उधर घुमाते हुये, उस हाथी को पूर्ण रुप से परेशान कर दिया / तदन्तर कुछ समय के पश्चात् उसके सामने वस्त्र का एक टुकड़ा फेंका थोड़ी देर के बाद दूसरी तरफ फेंका, थोड़ी देर के वाद तिसरी तरफ फेंका / हाथी की परेशानी सीमातीत हो चुकी थी। यह सब चालाकी का तमाशा, राजा मंत्री, सैनिक तथा हजारों की संख्या में जनता देख रही थी, सबों को इतना विश्वास तो हो चुका था कि, इस मदोन्मत हाथी को यह कुब्ज वश कर लेगा, ताली बजाती हुई जनता देख ही रही थी तब यह कब्ज हाथी को मालुम भी न पड़ें इसप्रकार रस्सी को पकड़कर हाथी के मस्तक पर आरुढ़ हो गया और दोनों तरफ के गंडस्थल (कान के आसपास) पर जोर से एड़ी मारी अर्थात् अपने पैरों को टकराया तथा अंकुश भी मारा / चिल्लाता हुआ हाथी सर्वथा परवश बन चुका था, तदन्तर हस्तिशाला में हाथी को लाया और सांकल से बांधा फिर रस्सी पकड़कर नीचे उतरकर वह कुब्ज राजा को प्रणाम करके संकेतित आसन पर आसीन हुआ / राजा, मंत्री तथा नगरवासियों ने स्वागत पूर्वक प्रशंसा की तथा अपने-अपने मन में विचारने लगे कि, जिस 115 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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