Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 114
________________ व्यवस्था में किसी भी प्रकार की गड़बड़ न होने पावे एतदर्थ सावधान था / एक दिन हस्तिशाला का राजमान्य हाथी मदोन्मत बना, तथा सांकल के बंधन को तोड़ फोड़कर नगर की तरफ आ रहा था, सामने आये हुए वृक्षों को तथा छोटे, कच्चे मकानों को नष्टभ्रष्ट करता हुआ स्वच्छंद घूम रहा था, महावतों की परवाह किये विना नगरवासीयों के लिए भयप्रद बना इसलिए उसे वश में करने के लिए बुद्धि वैभव मंत्री भी निष्फल रहे, शस्त्रधारी सैनिकों ने हार खाई और त्रस्त प्रजा इधर-उधर जान बचाने के लिए भागने लगी / ऐसी परिस्थिति में सुरा (शराब) सुन्दरी (परस्त्री या वेश्या) तथा शिकार के गुलाम बने हुए राजाजी वेिचारे क्या कर सकते थे। 1. प्रथम तीर्थकर, प्रथम मुनि तथा भारत देश के प्रथम राजा ऋषभदेव से शासित अयोध्या नगरी तथा दूसरे देशों के राजा-महाराजा जबतक जैनाचार्यों के अहिंसा, संयम तथा तपोधर्म की मर्यादा में शासित तथा श्रद्धा संपन्न थे, तब तक राजाओं में राजधर्म, नूपतियों में नृपतिधर्म, भूमिपतियों में भूमिपति धर्म के उपरांत उनकी नसों में, रक्त में मांस, में क्षात्रतेज था, आंखों में चमक थी, मस्तिष्क शीतल होने से दयालु थे / प्रजा से थोड़ा लेकर उनके योगक्षेम की रक्षा चौगुनी करने वाले थे, अत: सैनिकों की मदद के बिना दूसरों के लिए कठिनतम कार्य भी उसके बांये हाथ के खेल जैसा सरल बन जाता था परंतु धर्म के नाम पर बने हुए संप्रदायों के कारण भारत देश की यह करूणता रही कि, धर्म तथा धार्मिकता का क्रमशः उपहास होता गया और उसके स्थान पर धर्मान्धता बढ़ती गई, फलस्वरुप पांडित्य गविष्ट पंडितों ने राजाओं के मन, बुद्धि तथा आत्मा को धार्मिकता से भ्रष्ट करके सुरा सुन्दरी तथा शिकार जैसे जघन्यपापो के मार्ग पर चढ़ा दिये और दिन प्रतिदिन राजाओ का क्षात्रतेज घटता गया, आन्तर जीवन सत्य तथा सदाचार से पतित होकर निस्तेज बनता गया, यही कारण 113 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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