Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 113
________________ में प्रविष्ट हुए, जहां पर इक्वीसवें नमिनाथ परमात्मा की भव्यातिभव्य मूर्ति स्थापित थी / कुब्ज ने श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होकर बड़े आदर से परमात्मा को वन्दन किया, नमन किया तथा जाप-ध्यान किया। के लोगस्स सूत्र के माध्यम से 24 तीर्थकरों की नामपूर्वक नमस्कार करना नामनिक्षेप कहा जाता है / / तीर्थकर परमात्मा के विरह में उनकी मूर्ति भी अर्हत्स्वरुप ही है, अतः प्रतिमाओं का जल, चंदन, पुष्प, दीप, धूप आदि उत्तमोत्तम द्रव्यों से पूजन करना तथा उनके सन्मुख एकाग्र होकर ध्यान तथा जाप करना स्थापना निक्षेप कहा जाता है। ___ भविष्य में होनेवाले तथा भूतकाल में हुए तीर्थकरों की स्तुति करना द्रव्य निक्षेप है। तथा विद्यमान तीर्थकरों को नमन, गुणस्तवन आदि करना भावनिक्षेप है / ये चारों निक्षेप उत्तरोत्तर बलवान होने से साधक के मन, वचन तथा काया को पवित्र करनेवाले हैं / क्योकि नाम लेकर गुणगान करने में जो मजा आता है उससे ज्यादा आनंद मूर्ति के सन्मुख एकाग्र होकर ध्यान करने में आता है। इसमें इन्सान मात्र का स्वानुभव ही साक्षी दे रहा है, द्रव्य निक्षेप में अरिहंत परमात्मा के गुण तथा अपनी आत्मा भी परमात्मास्वरुप कैसे बनने पावे ? ये ख्याल आते ही साधक आनंदविभोर वन जाता है / भावनिक्षेप द्वारा किया हुआ स्तवन पूजन नमन आदि. सब के सब सदनुष्ठान होने से व्यक्ति विशेष के लिए भी स्वीकार्य है। कुब्ज ने पूजन, नमन पूर्ण किया और मंदिर से बाहर आया सुसुमारनगर की देखने के इरादे से नगर के मुख्य द्वार पर आया और नगर की रोनक देखकर खुश हुआ। इस नगरी का राजा दधिवर्ण था, जो इन्द्रियो के भोगविलास का शौकिन, मन का अनियंत्रित तथा संसार की नश्वर माया को बढ़ाने में तथा उसके भुगतान में ही जीवनयापन कर रहा था, तथापि राज्य 112 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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