Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 109
________________ 5) महादरिद्र इन्सान के जैसा पेट ढोल सा हो गया। 6) शरीर के प्रत्येक अंग और उपांग अदर्शनीय बने / 7) आंखें कोड़ी के समान भयानक बनी। शरीर की दशा को इसप्रकार देखकर राजाजी खुब चिन्तित बन गये और बच्चे की तरह रोने लगे, खूब रोये / मस्तक पकड़-पकड़कर रोये, तथा पश्चाताप करते हुए बोले कि, परमदयालु, जगदीश्वर, देवाधिदेव, अरिहंत परमात्माओं ने इन्सानों को सुखी बनाने के लिए ही सात व्यसनों को सर्वथा त्याज्य बतलाया हैं / सीमातीत जुएँ के पाप से आज मेरी यह दशा प्रत्यक्ष है, दक्षिणार्ध भारत का शहनशाह था और आज कहीं पर खड़ा रहने लायक भी नहीं रहा / परस्त्रीगामी और वेश्यागामी बने हुए असंख्यात मनुष्यो ने अपने जीवन का यश रुप, धन, दौलत, मानमरतबा, ज्ञान, विज्ञान तथा बुद्धि का सर्वथा या त्रमशः देवाला निकालकर खानदान में कालिमा लगानेवाले बने हुए है / शराव, अफीम, भांग के नशे में जीवनयापन करते हुए श्रीमंत और सत्ताधारी नष्ट बुद्धिवाले होते हुए अपने माता, पिता तथा अपने संतानो के भी श्रद्धापात्र रहने नहीं पाये / इस प्रकार नलराजा पश्चाताप के मारे अत्यन्त दुःखी बनकर विचारने लगे कि, अब मुझे जीवित रहने से भी क्या फायदा? तो क्या मरण के शरण बन जाऊँ ? ऐसा होने पर भी मेरी आत्मा को कुछ भी फायदा होनेवाला नहीं है, क्योंकि मरने पर शरीर का नाश अवश्य होगा, परंतु मोह, माया, काम तथा क्रोध से वशीभूत बनकर किये हुएअगणित पापकर्मों का भार तो मेरे मस्तक पर से दूर होनेवाला नहीं है। इससे अच्छा तो यही है कि तपश्चर्या रुपी अग्नि में संपूर्ण पापकर्मों का नाश करानेवाले और जीवमात्र को पापोसे मुक्ति देनेवाले, अरिहंत परमात्मा की प्रवज्या (दीक्षा) धर्म स्वीकार करके तपश्चर्या की आग में मैं मेरे पापकर्मों को नाश कर Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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