Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 108
________________ से नीचे उतरकर जिसतरफ आग का भय नहीं था उस तरफ जाकर वस्त्र को झटका देने को तैयार हुए, परंतु अनुभवी ज्ञानिओं ने कहा कि, संसार में हर किसी इन्सान के पेट की बातें जानना सरल हो सकता है, तथापि कुदरत के पेट की वातें जानना संसार के ज्योतिषीओं का समुदाय भी समर्थ नहीं है। होनहार वलवान था जभी तो सर्प ने अपनी पूर्ण शक्ति से नलराजा के हाथपर जोर से डसा (डंख मारा) नल ने भी कपड़े को जोर से झटक दिया और सर्प जभीन से नीचे गिरा। - नलराजा ने कहा, 'हे कृतघ्नों में शिरोमणि तुमने अपनी जाति के समान ही मेरे साथ बर्ताव किया है / मृत्यु के मुख से मैंने तुम्हें बचाया और जीवनदान दिया है, फिर मेरा उपकार मानना तो दूर रहा किन्तु पापी प्राणी भी या राक्षस भी न कर सके वैसा तुमने किया है / अथवा तुम्हारी जाति का यही बड़ा भारी दूषण है, जो तुम्हे दूध पिलाता है. उसी को तुम डंख मारते ही, इसीलिए धर्मसूत्रकारों ने तुम्हें अदृष्ट कल्याणी कहा है / तुम्हारे दर्शनमात्र से इन्सान की नींद भी हराम हो जाती है / अगणित तिर्यचयोनि के जीव जिसमें नकुल. मयुर, वन्दर आदि है तुम्हारी जाति के कट्टर दुश्मन है और मनुष्य तो डंडों से मारमारकर या आग में फेंक कर जला देनेवाले हैं। . विषधर के विष की असर नलराजा के शरीर में बढ़ रही थी, फलस्वरुप उनके शरीर में अस्तिनीय तथा अकल्पनीय फेरफार इस प्रकार हुआ। 1) गौर बदन कोयलेसे जैसा श्याम हो गया। २)श्याम बाल अग्निज्वाला से पीले पड़ गये। ____3) दर्शनीय शरीर धनुष के समान झुक गया। ___4) लाल तथा सुहावने ओठ (ओष्ठ) ऊंट के समान लटकने वाले बन गये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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