________________ देनेवाले भाग्यशाली, अपने शरीर की भी परवाह किये बिना दूसरों को मृत्यु के मुख से बचाते ही हैं। .. राजा ने कहा, 'हे नागराज !' आप स्वयं तैर्य व प्राणी हो. फिर भी मनुप्यभाषा में तुम क्यों और कैसे बोल रहे हो ? अत: आप कौन हो ? इस बात को भी स्पष्ट कर दीजियेगा, मुझे अनुमान है कि कदाच भाप देव होगे ! दानव' होगे या मेरी परीक्षा करने के इरादे से आप कोई अन्य होंगे ? तब नागराज ने कहा, हे राजन् ! मैं पूर्व जन्म में नुष्य था, उस समय की अभ्यस्त भाषा, अब भी मुझे स्मृति में होने / ही मैं मनुष्य भाषा स्पष्ट रुप से बोल रहा हूँ। दूसरी बात यह है क, स्पष्ट अवधिज्ञान का भी मैं मालिक होने से तुम्हारे नाम-ठाम वभाव, दया, दान आदि सत्कर्मों को मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, सीलिए मेरी करुण प्रार्थना को सुनकर शीघ्रता से मुझे बचाने का उपाय कीजियेगा, आप इतना भी ख्याल में रखना कि संकटग्रस्त इन्सान र किया हुआ उपकार कभी भी बेकार नहीं जाता है। / एक तरफ भयंकर काला नाग और दूसरी तरफ समझने में आवे ऐसी उसकी कथनी होने पर भी द्विधा में पड़े हुए राजा बोले कि, भवधिज्ञानी तो देवयोनि के जीव होते हैं, अतः आप यदि देव है तो अपनी रक्षा स्वयं क्यों नहीं कर पाते हो ? अथवा इतनी भयानक आग में फँसने के पहले आपका अवधिज्ञान कहां चला गया था ? उत्तर में नागराज ने कहा, राजन् ! इस विकट समय में आप मुझे ज्यादा कुछ भी न पूछे क्योंकि प्राणी जव मृत्यु के मुख में पड़ चुका है, तो सबसे पहले उसको जीवित दान देना ही मानवीय कर्तव्य है, कृतकों का चक्र ही इतना ताकतवाला होता है, जिससे मेरे से भी ज्यादा शक्तिसंपन्न इन्सान भी किंकर्तव्यमूढ़ बन जाता है या उस समय उसकी स्मृति, जानकारी, होशियारी आदि सबके सब एक ही साथ समाप्त हो जाते हैं / मेरी भी यही दशा होने पाई है, अतः अविलंब मुझे बचा लीजियेगा। 105 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust