________________ (1) श्रेष्ठतम इक्ष्वाकुकुल में जन्मे हुए क्षत्रियोत्तम नलराजा ! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो। .. (2) "अपनी नजर के सामने किसी प्राणी को मरने नहीं देना" इस प्रकार का पुरुषव्रत तुम्हारा जन्मजात होने से भी हे नलराजा ! मुझे बचाने का प्रयत्न सर्व प्रथम कीजियेगा / अन्यथा यह भयंकर आग मझे जलाकर राख कर देगी। (3) राजन् ! कबूतरों कोधान्य, कुत्तों को रोटी देनेवाले वहुत है, परंतु निःसहाय प्राणी की रक्षा करने वाले लाखों करोड़ों मानवों में माई के लाल तुम्हारे जैसा एक ही होता है। अतः हे नलराजा ! मुझे बेमौत मरने से बचाओ / इस भयंकर अग्नि की गरमी से मैं सर्वथा निःसहाय बन गया हूँ। एक कदम भी चलने में मेरी शक्ति रहने नहीं पाई है, अत: मेरी प्रार्थना को हृदय में धारण करके मुझे यथाशीघ्र बचाने का सोचियेगा। . .. +(4) हे मानवरत्न ! मेरी रक्षा होने पर मैं भी तुम्हारे पर चिरस्मरणीय उपकार करनेवाला बनूंगा, क्योंकि, 'परस्परोग्रहो जीवानाम्' परस्पर उपकार करना तथा एक दूसरे का मददगार बनना ही मानव जीवन का फल है। ना .. ' इस प्रकार की अकल्पनीय मनुष्य भाषा को सुनकर नलराजान आग की तरफ देखा तो उसमें तड़पता हुआ भारी काला नाग देखन में आया। उसकी कातर आंखे इन्सान मात्र को कह रही थी कि पैसा से दान पुण्य करनेवाले बहुत हैं, परंतु भूख के मारे तथा अग्नि, जल आदि उपद्रवों के मारे निःसहाय अवस्था में मरनेवाले जीवों को बचाना ही सर्वश्रेष्ठ अभयदान है। . नलराजा बड़े ही चिन्तित थे, क्योंकि किसी को भी बचाने के लिए उनके पास कुलभी साधन नहीं था, फिर भी जीवों को भी अभयदान 104 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust