Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 104
________________ करता था। नलराजा भी स्थल मन के चक्र में आकर दमयंती रवाह किये बिना विदर्भ तथा कौशल देश के मार्ग को छोड़कर बढ़ने के लिए कदम ऊठाये। / / / _कुछ दूरी पर गये होंगे और एक दिशा में से आकाश व्याप्त हुए, अंजन के सदृश श्याम मानो ! पांखों से युक्त कोई पर्वत श में भ्रमण कर रहा हो, वैसा भयंकर धुआं देखने में आया / जी की नजर उस तरफ गई और देखते देखते ही उस धुएँ में से काल को याद दिलवाने वाली अग्नि की ज्वालाएँ उत्पन्न हुई। जो को आश्चर्यान्वित होना स्वाभाविक था, क्योंकि बड़े-बड़े वृक्षों तन और ज्वलन स्पष्ट रुपसें अपने सामने ही प्रत्यक्ष था / कभी भी देखी हुई, न सुनी हुई इतनी भयंकर आग को देखकर पहले से दशामूढ राजा सोचने लगे कि, अब क्या किया जाय ? किसतरह [ ठीक होगा ? न मालम मेरा क्या होगा ? साफ-साफ दिख रहा , यह आग चारों दिशाओं में फैल चकी होने से भविष्य में भी भयंकर स्वरुप धारण करेगी ? अथवा पूरे जंगल को खाखा कर अगणित चराचर सृष्टि को नाश करनेवाली बनेगी ? ईश्वर माया से निर्मित विनाश को रोकने की शक्ति इन्सान के पास न से मेरे जैसे लाखों इन्सान भी इसे शांत करने में समर्थ नहीं है। में कुछ कम पड़ रहा था और अग्नि की ज्वालाएँ आकाश तरफ तेजी से जा रही थी / पूरा जंगल इतना गरम हो चुका था। जिससे न को खड़ा रहना भी मुश्किल था / चार पैर वाले पशु भयग्रस्त गये होने से दौड़-दौड़कर इधर उधर भागे जा रहे थे, पक्षी भी . के मारे तड़प रहे थे। " - कुछ समय के बाद कालकराल. उस अग्नि में से मनुष्य के जैसी र भाषा नलराजा को सुनने में आई जो इस प्रकार थी - गरे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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