Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 102
________________ क्षण चाहे कितनी भी दुःख, संताप, वेदना तथा कूटबिओं के वियोग र्ण हो सकती है, तथापि वैसे अवसर पर रोने से, छाती कुटने से, देने से या बिना मौत मर जाने से उसका निराकरण कभी भी हो / सकता है, अत: परोपकारित्व, सहिष्णुत्वा, दयालत्व आदि गुणों का / करना तथा बढ़ाना ही श्रेय तथा प्रेम की आराधना है। नलराजा की दशा वटवृक्ष के नीचे सुषुप्त दमयंती को छोड़कर निष्ठुर बने नलराजा से गये, तबसे आज तक उनका समय कैसे पसार हुआ? दशा कैसी बनी वाते जाननी अत्यावश्यक इसलिए है, जिससे कृतकर्मों की कुटिलता तनी भयंकर और अकाटय होती है, उसका ख्याल अपनों को आ सके कि महापुरुषों, का सुखदुखमय, संयोग वियोग तथा आपत्ति संपत्तिमय वन ही सभी के लिए प्रेरक बनता है, साथसाथ किसी भी भवमें अरिहंत मात्माओं की पूजा, जाप ध्यान, तथा पंचमहाव्रतधारी मुनिराजों की | वैयावच्च, गोचरीपानी का लाभ तथा दिन दुःखी अनाथों को दुःखसे त करना, रोगियों को रोग से मुक्त करना, भूखे इन्सानों को रोटी पानी T, कामी क्रोधी को काम क्रोध से मुक्त करवाना ही कितना अजबव तथा अचिन्नीय पुण्यकर्मों को करवाने वाला होता है, ये सब ने अपने जीवन में आवे इसलिए महापुरुषों के जीवन को लिखना, ना, सुनना, तथा मनन करना ही उत्तमोत्तम मानव जीवन __ आज तो नलराजा के जैसा दुःखी दूसरा कोई नहीं है / भरतार्थ राजा स्वयं रोटी के टुकड़े के मोहताज है, खड़े रहने की जमीन नहीं नी पीने को ग्लास नहीं, सोने के लिए पथारी नहीं तथा शरीर ढकने लिए कपड़े के अर्धे टुकड़े के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। फिर भी नक पास इन्सानियत है, दयालता तथा सहृदयता है। जभी तो भयंकरतम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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