Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 100
________________ आपका गौरव चिरस्थायी बनेगा। राजाने बात को मानकर, चतरंगिणी सेना तथा मंत्रिजी के साथ दमयंती को बिदा की। मेरा कार्य सोलह आना सफल हुआ यह समझकर बटुक को नानंद का पार नहीं था / . ... पिता पुत्रीका सम्मिलन र का . विदर्भ देश के राजा भीम को जब दूतों के द्वारा मालम हआ तो वह रसाले के साथ अपनी पुत्री को लेने के लिए सामने आये। हर्ष तथा शोक के भार से लदी हई दमयंती रथ से नीचे उतरी और दौड़ती हुई अपने पिता के चरणों में झुक गई / लंबे काल से पिता पुत्री का मिलन होने से दोनों की आंखों से आंसुओं की धारा बिना रोकटोक के जारों से चल रही थी। पिता ने अपनी पुत्री को छाती से लगाया। तत्पश्चात अपनी माता के चरणों में छोटी बच्ची के माफिक ही गिर पड़ा। माता का स्थान माता के अतिरिक्त दूसरा कोई भी नहीं ले सकता है / बड़ी बड़ी चट्टानों से टकराती हुई यमुना तथा गंगा जब प्रयाग में परस्पर मिलती है, तब वह पावन प्रसंग अगणित जीवात्माओं के लिए हर्षदायक बनता है उसी प्रकार आज बड़े भारी असहय दुखों को पार करती हुई पुत्री अपनी माता के चरणों को प्राप्त करती होगी, तव आंखो में से बहती हई आंसूओं की धार को कौन गिनेगा? कैसे गनेगा ? क्योंकि कदाच संसारभर के सब स्नेह विश्वासघात बन सकेंगे परंतु मातस्नेह को किसीने भी विश्वासघातक के रुप से देखा नहीं है, सुना नहीं है तथा अनुभव में नहीं आया है। यही कारण था के, माता तथा पुत्री के मिलन में देवोंने पुष्पों की वर्षा की, विद्याधरों ने संगीत किया, गंधर्वो ने नत्य किया, यक्षों ने जयजयकार किया और वदर्भ देश की प्रजा ने सूवाद्य वांजित्रों से आकाश तथा पृथ्वी को जयबाद से भर दिया। अपनी माता से मिलकर दमयंती का विलाप जोरपर वना, क्योंकि प्राणिमात्र का यही स्वभाव रहा है कि, अपने स्वजनों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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