Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 33
________________ आ गई, और बोली 'नाथ ! आपसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है, आप मेरे पर दया करो और पापफल को भुगताने वाला जुगार तथा जुगारी को छोड दीजिये क्योंकि ये दोनों इस समय आपके दुश्मन बनें रहे हैं / यद्यपि छद्यस्थ जीबन में व्यसन होना अस्वाभाविक नहीं है, तथापि वह केवल शौक की पूर्ति के लिए ही होना चाहिए, परंतु जिस व्यसन से इन्सान अंधा बन जाय घरवाली का भी रहने न पावे, ऐसी आदतें भयंकर हानिप्रद होने से अरिहंतों के शासन ने उसको सर्वथा त्याज्य कही है। ताश (गंजीफा) खेलना, रमी खेलना, या चौपटबाजी खेलना ये खतरनाक व्यसन होने से आपके लिए भी त्याज्य है / कुबर आपका छोटा भाई है, इसलिए उसको यदि राज्यगादी चाहिए तो मेरा कहना मानकर इसी समय यह राज्यधुरा उसके कंधे पर रख दीजिए। क्योंकि हारने के बाद किया हुआ दान, दान नहीं है, किन्तु जीवन का कलंक है। सैकड़ों युद्ध करके आपने इतना बड़ा साम्राज्य प्राप्त किया है उसको जुगार के जरिये खतम कर देना ठीक नहीं है। - ... __ दमयंती के उपरोक्त कथन को नलराज ने सुना भी नहीं तथा उसकी तरफ दृष्टिपात भी नहीं किया। महाकाय हाथी को दशमी मदावस्था प्राप्त होने पर वह किसीका भी रहने नहीं पाता है, उसी प्रकार जुगार के मद ने नलराजा की सुध बुध को खतम कर दी थी, इसीलिए रुदन करती हुई दमयंती तथा अमात्य और महाजनों ने भी राजा को समझाया, परंतु सन्निपात के रोगी को एक भी औषध जैसे कामयाब नही होती है. उसी प्रकार पूर्वोपार्जित पापकर्मका उदय ललाट में आकर बैठ चुका हुआ होने से राजाजी के कान किसी की भी बात सुनने के लिए तैयार नही थे / आखिरी फल जो मिलनेवाला था वही मिला, नलराज ने सम्पूर्ण पृथ्वी के साथ अपनी प्राणप्यारी दमयंती को भी जुगार में गमा दी। सर्वस्व हारे हुए नलने अपने शरीर से सब 31 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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