Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 93
________________ राज कैसे है ? राज्य संचालन कैसे रहा है प्रजा सुखी- है / कुछ आपत्ति तो नहीं है ? आक्रमण का भय तो नहीं हैं ? मेरी बहन पुष्पदंती ठीक है ? दमयंती के समाचार तो ठीक है ? तुम्हारा आना कैसे हुआ ? इत्यादिक प्रश्नों का उत्तर देते हुए राजबटु ने कहा, रानीजी ! विदर्भ देश में परमदयाल परमात्मा की कृपा से सब काई कुशल है। परंतु कौशल देश के राजाधिराज नल तथा सतीधूय्या दमयंती के बारे में कुछ चिंतनीय है। सबसे पहले दनयंती की शाध करना अत्यावश्यक है / अश्रवणीय बात को सुनाकर राजारानी पर वज्र सा आघात लगा और बेहोश भी हो. गये, सभा में शोक-संताप का सन्नाटा छा गया। शीतोपचार के पश्चात् होश में आये राजा ने गद्गद् होकर पूछा और बटुक ने जुगार, राज्यभ्रष्ट बनवास तथा दमयता के त्याग की जब वाते कही और रानीजी तथा राजाजी फूट फूट राय, राजसभा दिगमढ बनी / / . उस समय सीमातीत थका थकाया वट भी उदासीन बन गया था, क्योंकि इन्सान के मस्तक पर चाहे पहाड भी टूट पड़े हो तो भा वैसी निराशाजनक स्थिति में संभव है कि, वह अपने सगे के यहां. भा पहँच ही जाय, परंतु अपनी सगी मौसी के यहां भी जव दमयंती के कुछ भी समाचार न मिले, तो वज्र हृदय इन्सान भी गमगीन बनने पाव उसमें क्या आश्चर्य ? फिर भी आहारसंज्ञा वश भूख के मारे चाह कोई भी हो तो भी आहाराभिलाषुक बनना तथा भोजन पानी के साधन जुटाना स्वाभाविक है, वृद्धों ने भी कहा है, ....... "भूख रांड भुंडी आंख जाये ऊंडी। .... पग थाय पानी, आंसु आवे तानी।" राजबटु की भी वही दशा हो चुकी थी अतः रोते हुए सब परिवारों को छोड़कर वह भोजनशाला में पहुँच गया। जहां स्थान मिला वहां थाला लेकर भोजन करने बैठा / 92 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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