Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 95
________________ और आभ्यन्तर जीवन, रुप, बोलचाल की भाषा आदि सुन्दर होते हुए भी मैं पहचानने में भूल खा गई उसका मुझे अतीव अफसोस है, या तो अपने आप को छुपाकर तुम ही भूल खा गई हो / क्योंकि सुदगा तथा दुर्दशा का चक्र तो जीव मात्र के लिए एक सा होते हुए भी अपने मातृकुल में अपनी जात को प्रकाशित करने में लज्जा का प्रश्न भी उपस्थित होता नहीं है / फिर भी जो होनहार था वह होकर ही रहा। ____ अब बतलाओ कि, तुमने स्वयं नलराजा को छोड़ा है ? अथवा नलने तुम्हारा त्याग किया है ? मुझे अनुमान है कि, साधारण स्त्री भी अपने पति को त्यागती नहीं है, तो तुम्हारे जैसी खानदानी, पतिव्रता, और स्वच्छ हृदया स्त्री दुर्दशा में गिरे हुए पति को यदि छोड़ देती है तो निश्चित है कि, सूर्यनारायण को पश्चिम दिशा में उदित होने का अवसर प्राप्त हो सकता है, परंतु ऐसा कभी हुआ नहीं है, होता नहीं है और भविष्य में होनेवाला नहीं है। इसी प्रकार खानदानी स्त्री भी पति को छोड़ नहीं सकती है / फिर भी नलराजा को यदि त्यागना ही था तो तुझे मेरे पास छोड़ देने में कुछ भी हानी नहीं थी, परंतु नल जैसे सात्विक शिरोमणि नररत्न भी बड़ी भारी भूल खा गये हैं / अथवा दुःख के ऊपर दूसरे दुःखों की परंपरा आने पर इन्सान मात्र भ्रमित सा हो जाता है, संभव है कि, नलराजा की यही मनोदशा रही होगी। . दमयंती ! तेरे दुःख में मैं सहभागिनी बनती हूँ, केवल मुझे दुःख इसी बात का सता रहा है कि, मैं तुझे पहचानने में गफलत बन पाई हूँ / अव बतलाओ कि, काली भयंकर रात में भी, अंधकार रुपी सर्प को भगाने में गरुड़ जैसा तेरा भाल तिलक, जो पहले सूर्य की तरह चमकता था, वह दिखता क्यों नहीं है ? रानीजी ने जब यह पूछा तो दमयंती ने भी अपने थूक से अपना ललाट साफ किया और अग्नि से उत्तीर्ण हुए सुवर्ण के समान, मेघ से बाहर आये सूर्य के समान, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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