Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 94
________________ संसार में परिश्रम द्वारा बनाये जानेवाले कार्यों की अपेक्षा जोगानु जोग (बाइचान्स) से बननेवाले कार्य ज्यादा होते हैं। दमयंती को ढूंढ़ते हुए. बटुकजी का दम निकल गया, परंतु अमुक स्थान में वह है / ऐसे समाचार भी कहीं से मिलने नहीं पाये, और आज वाइचान्स था कि, उसकी नजर भोजनशाला की व्यवस्थापिका पर पड़ी और तेज घोड़े के मुताबिक वह चमक गया, खूव सावधानी से देखने पर उसे महसूस हुआ कि, यह वहन दमयंती ही है / आश्चर्य तो जरुर हुआ कि, दक्षिणार्थ भरत के राजाधिराज नल की यह पटट्रानी, कर्मों की कुटिलता के कारण ही छद्मवेष तथा नाम से दासी बनकर काम कर रही है। वह दमयंती के पास आया और नम्रतापूर्वक बोला कि, आज हमारा बड़ा भाग्य है कि, आप दृष्टिगोचर होने पाई, विदर्भ तथा कौशलदेश के राजा तथा प्रजा के भी पुण्य जागृत होने के कारण आपको जीवित अवस्था में देखने पाया; अपनी भूख तथा प्यास की भी परवाह किये विना वह दौड़ता हुआ चन्द्रयशा रानी के पास आया और वोला, देवीजी ! बधाई है, आपको हजारों वार बधाई है / आश्चर्य तो केवल इसीलिए हो रहा है, इतने लंबे समय में भी आपकी भाणेज दमयंती को आप पहचानने न पाई / तो क्या वह दमयंती है ? जी हां वह दासी आपकी भाणेज दमयंती है, जिसकी खोज करने में मुहल्ले-मुहल्ले में भटक रहा था। इतना सुनते ही रानीजी स्वयं दानशाला में पधारी और हंसी जिस प्रकार कमलिनी का आलिंगन करती है, उसी प्रकार दमयंती को छातीसे लगाकर रानीजी अपने रुदन को रोकने न पाई / छद्मस्थ जीवन का यह. नियम है कि, दुःखार्द्र बनकर जब एक रोता है, तो सामनेवाला भी रोये बिना रह नहीं सकता है / मौसी भाणेज दोनों रु दन करने लगी तत्पश्चात् रानीजी ने कहा, मुझे धिक्कार है कि, मेरे पास रहती हुई तुझे मैं पहचानने न पाई। अथवा सामनेवाले इन्सान के कर्म ही कुटिल हो तो अच्छे से अच्छे बाह्य लक्षणों से.लक्षित इन्सान को सामुद्रिक ज्योतिषी भी पहचानने में भूल खा जाते हैं / यही कारण है कि, तेरा बाह्य . . . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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