Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ / दमयंती का ललाट चमकने लगा। रानीजी को विश्वास हुआ कि, वाल्यवय की दमयंती जैसे पवित्र थी वही पवित्रता परिणीत होने के पश्चात् भी सुरक्षित है यह जानकर चन्द्रयशा रानी को बड़ा आनन्द व गौरव रहा / तत्पश्चात् उन्होंने अपने हाथों से दमयंती को स्वच्छ शीतल तथा सुगंधी जल से स्नान कराया, सफेद वस्त्रों का परिधान करवाया, तथा अपने हाथ में हाथ पकड़कर उसे ऋतुपर्ण राजा के पास ले आई और राजा से संकेत प्राप्त करने पर सुवर्णासन पर दोनों बैठ गये। उसी समय आकाश को भयंकरतम अंधकार से भरता हुआ सूर्यनारायण अस्ताचल पर्वत की यात्रा करने पधार गये / सारांश कि, सूर्य के अस्त होने पर पूरा संसार अंधकारमय बन गया। भयोत्पादक अंधकार में चमकते हुए दमयंती के ललाट को देखते हुए राजा ने पूछा, हे देवी! इस समय अपने महल में दीपक भी नहीं है, अग्नि भी नहीं है तथा सूर्यनारायण भी अस्त हो चुके हैं, तथापि यह रात-दिन के सदृश क्यों तथा किस कारण से चमक रही है ? उत्तर में रानीजी ने कहा स्वामिनाथ ! मेरी यह भाणेज दमयंती ने किसी भव में अष्टापद तीर्थ पर स्थित चौबीस तीर्थकर परमात्माओं के ललाट पर सुवर्ण पट्टक पर मंडित हीरो के तिलकों की आभूषण पूजा की थी तथा पधारे हुए मुनिराजों को गोचरी पानी से पारना करवाया था, उसी कारण से उपार्जित पुण्य का खजाना लेकर जन्मी हुई दमयंती का कपाल अंधकार में भी सूर्य की तरह चमक रहा है। सभास्थित सम्यों को आश्चर्यचकित करनेवाली रानीजी की बात सुनकर राजाजी को. आनन्द तो आया तथापि परीक्षा करने के इरादे से ज्योंहि अपने हाथ से दमयंती के ललाट को संवृत (ढंक दिया) किया उसी समय अंध कार ने अपना प्रभुत्व' पुनः जमा लिया और ज्योंही ललाट से हाथ हटा लिया तो पुनः उसका ललाट चमकने लगा। राजाजी बड़े खुश हुए और अरिहंत P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132