Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 73
________________ रहा था / सुखपूर्वक सोई हुई दमयंती भी उस मंत्रोच्चार को बड़ी सावधानी से सुन रही थी, उसे आनंद का पार न रहा / प्रातः समय में दमयंती को जयजिनेन्द्र करने हेतु सार्थवाह जब आया तब दमयंती ने कहा, रात के समय जो भाग्यशाली इतने मधुस्वरों में नमस्कार महामंत्र पढ़ रहा था, उसके दर्शन करने की अभिलाषा है, आप मुझे उस स्वामी बंधु के पास ले जाने का कष्ट करे, उसकी इच्छा को पूर्ण करने के इरादे से सेठजी ने उसी समय स्वामी बंधु जिस तंबु में था वहां पर दमयंती को लेकर आया जहां पर अपने सामने वस्त्र का एक पट्ट रखकर वह भाई चैत्य वन्दन कर रहा था, भाववाही चैत्यवन्दन, स्तवन और मधुर कंठ उच्चारित नमुत्थुणं आदि के पाठ को सुनने में उसको वड़ा भारी आनन्द आया / जब भगवान की भक्ति इतनी सुन्दर हो रही हो तव बीच में एक भी अक्षर बोलना या बातें करना परमात्मा की मश्करी करने जैसा है / दमयंती सर्वथा मौन लेकर बैठ गई / क्योंकि सूत्रोच्चार तथा स्तवनादि संगीत है उससे बोलनेवाले को जो आनंद आता है, सुननेवाले को उससे ज्यादा आनंद आता है संगीत उच्च प्रकार की एक विशिष्ट कला है जो मोक्ष दिलवाने में समर्थ है / उसे चाहे कोई भी करे या बोले उसकी अपेक्षा एकरस होकर तन्मय बनना ज्यादा महत्व रखता है वन्दनादि क्रिया पूर्ण होने के बाद जयजिनेन्द्र पूर्वक दमयंती बोली, आप बतलाईए कि, इस पट्ट के बीच जो बिंव है, वह कौन से तीर्थकर परमात्मा का है ? उत्तर में उसने कहा, 'हे धर्मशील वहन ! भविष्य में होनेवाले 19 वें मल्लिनाथ परमात्मा का यह विंव है,आगामी प्रभु का बिंब आपने क्यों रखा ? जवाब में श्रावक ने कहा, मैं समुद्र के किनारे कांचीपुर नगर का वणिक् हूँ, एकबार धर्मगुप्त नाम के मुनिराज हमारे गांव पधारे, वन्दन व्यवहार करने के पश्चात् मैंने पूछा, 'हे गुरुदेव ! मेरा निस्तार किन परमात्मा के शासन में होगा ? उत्तर में गुरुजी ने कहा, मिथिला नगरी में तू प्रसन्नचन्द्र राजा जब 72 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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