Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 76
________________ तपोधर्म की सम्यक् आराधना के बिना कोई भी जीव आत्मोत्थान करने में समर्थ बनता नहीं है अतः ये चार धर्म है उपरोक्त देव गुरु और धर्म जिन भाग्यशाली की आत्मा में स्थित है उनका जीवन ही मंत्रमय होने से स्वपर कल्याण उनके लिए सुलभ बनता है / दमयंती का जीवन ही संयमित तथा मर्यादित था, अतः उसके सामने देव, देवी राक्षस आदि का भी चलने नहीं पाया तो विचारे मगर की कितनी शक्ति ? ऋतुपणे राजा की दासीएँ जिस बावडी के ऊपरितन पगथिएँ पर दमयंती बैठी थी, वह अचलपुर नगर की सीमा में थी, जहां पर ऋतुपर्ण नाम का राजा राज्य करता था / चन्द्रसमान उज्जवल यशवाली चन्द्रयशा नाम की रानी तथा चन्द्रवती कन्या थो। राजघराना बड़ा होने से जल का वपरास ज्यादा रहता होने से रानीजी की दासीएँ पानी भरने को बावडी पर आती है और पानी भरकर पुन: जाती है। आज के दिन जब वे पानी भरने आई, तब दमयंती को देखकर आश्चर्यचकित बनकर विचारने लगी, क्या यह देवी है ? नागकन्या है? यक्ष कन्या है? इन्द्र महाराज की अप्सरा या किलोत्तमा है ? इन विचारों में भटकती हुई वे दासीएँ विचारने लगी, यह स्त्री, देवी आदि तो नहीं है क्योंकि देव-देवी की आंखें पलक मारती नहीं है, जमीन पर पैर उनके पड़ते नहीं है तथा पसीना भी उन्हें आता नहीं है / जब इसकी आंखे भय की व्यथा के मारे चारों तरफ पलक मार रही है, पसीना भी भयजन्य सा लग रहा है, तथा जमीन पर आसीन ही है, अतः यह मनुष्यस्त्री होनी चाहिए तो क्या राजकन्या होगी? कुमारी होगी ? किसी की धर्मपत्नी होगी ? तो पतिने ऐसी सुलक्षणी नारी को घर से क्यों निकाल दिया होगा ? दासीओं की बुद्धि इसप्रकार के तर्क वितर्कों में कुछ भी निर्णय कर न सकी तब उसमें से एक दासी बोली, देखोजी ! अपन सब रानीजी की चरण सेविकाएँ है। माना कि अच्छे खानदान की लड़कियें होने पर भी 75 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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