Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 81
________________ कार्य करने की तुम्हें सुविधा दी जाती है। मेरी पुत्री चन्द्रवती और तुम्हारे में मुझे कुछ भी फर्क महसूस नहीं होता है, अतः दोनों साथ में खेलो-कूदो साथ-साथ धर्म तथा पुण्य करो और दूसरों को भी करने का अवसर दो।. . . भीमराजा की पुत्री दमयंती जो दक्षिणार्थ भरत के राजाधिराज नलराजा से विवाहित है, मेरी भाणेज होती है जब वह छोटी थी तव मैंने देखी थी आज तो वह भी तुम्हारे जितनी बड़ी हो गई होगी ? तुम्हें देखती हुँ और मेरी भाणेज दमयंती की याद सताने लगती है, परंतु मन में समाधान कर लेती हूँ कि, उसका अकेली का आवागमन मेरे यहां सर्वथा असंभावित है, ऐसा कहकर रानीजी ने पुनः उस लड़की को अपने गले लगा ली / सामनेवाला व्यक्ति मेरे से संबंधित है या नहीं ? इस विषय में अपना अंतःकरण ही प्रमाण बनता है, केवल दुविधा इसलिए कि, यह लड़की बनिये की है और पुत्र-वधु भी बनिये की है अतः सबकुछ एक समान होने पर इस लड़की को वह अपनी भाणेज मानने की उतावल न कर सकी / फिर भी रानीजी ने उससे कहा, इसमें क्या तथ्य है वह परमात्मा जाने तो भी मेरा अदृष्ट मन साक्षी देता है कि, मैं तुम्हें मेरी भाणेज ही मानकर तुम्हें प्यार करूँ / दानशाला में दमयंती का आगमन मा चन्द्रयशा रानीजी बड़ी दयालु होने से गांव के बाहर एक दानशाला का संचालन करती थी, जिसमें अपने गांव का तथा दूसरे गांव का कोई भी मुसाफिर पेट भरकर भोजन करता था, रानीजी भी वहां पर प्रतिदिन जाती थी और गरीबों को कुछ न कुछ देकर ही बिदा करती थी। इस प्रकार दीन, दुःखी, अनाथ तथा ब्राह्मण अतिथि साधु संत भी उस दानशाला मे भोजन पाकर संतुष्ट होते थे / एक दिन दमयंती ने रानीजी से कहा, बाईजी यदि आप कबूल करें त 80 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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