________________ बैठी हुई देखकर बोली, इस नगर में ऋतुपूर्ण राजा की चन्द्रयशा नाम की पट्टरानी तुम्हें बहुमान पूर्वक आमंत्रण दे रही है, अतः शून्यचित्त बनकर इस भयंकर जंगल में रहना छोड़ दो और मानसिक, वाचिक तथा कायिक सब प्रकार के गुप्त तथा अगुप्त दुःखों को तिलांजली दो, क्योंकि कदाच दुराचारी, दुष्टभाषी, बदमाश इन्सान लुच्चाई पूर्वक तुम्हें परेशान करे अथवा व्यंतरादि दुष्टयोनि के देव अनर्थ करे इससे नगर में पधारने का रखें, जिससे तुम सब संकटों से बच जाओगी। बहन ! तुम्हारा यह मुलायम शरीर, सूर्य के समान चमकता ललाट, (कपाल) लंबे हाथ, पोपट सी नाक, लंबे कान, पूर्ण चन्द्रमा तुल्य मुख, दाडिम के दाने से दांत, परिपक्व टमाटर से होंठ, काली नागन जैसी यह वेणी तथा हथिणी-सी चाल देखकर अनुमान करना सरल है कि तुम बड़े ऊंचे खानदान की पुत्री हो या कुलवधु हो, परंतु कर्मों के बड़े भारी विषचक्र में फंस गई होने से आज तुम्हें वनवास मिला है। बहन संकट तो इन्सान पर ही आते हैं और जाते हैं। पत्थर को कौन सा संकट आनेवाला है ? अग्नि में खूब-खूब तप जाने के बाद सुवर्ण किमती बनता है / अपनी छाती पर अग्नि का भार सहन करने के बाद ही दीपक प्रकाशमान होने पाता है। सुई से अपने हृदय को विधान वाला पुष्प ही माला के आकार में परिवर्तित होकर अरिहंत परमात्मा ओं के, दीक्षार्थीओं के तथा दूसरे पुण्यशालीओं के गले को सुशोभित करता है, अतः दुखों का आना और भुगतना किसी को भी पसंद न पड़े तो भी संकटग्रस्त इन्सान जब भी उनसे छुटकारा पाकर मुक्त बनेगा तब वह अत्यंत गौरव को प्राप्त होकर लाखों करोड़ों जीवों को अभयदान देकर उपकार करनेवाला बनने पायगा, तो अब कुछ भी आगे पीछे का सोचे बिना हमारे साथ चलने की तैयारी करो और चलो। महारानीजी तुम्हें पुत्री की तरह सत्कारेगी राजाजी खुश होंगे और चन्द्रयती तो तुम्हें देखकर खुशी के मारे नाचने लगेगी। यह देखकर 78 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust