Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 82
________________ आपके बदले में दानशाला में ध्यान रखं / जिससे किसी भी वेष में यदि मेरा पति आया तो उसको पहचान सकूँगी। रानीजी ने बात मान ली और दमयंती ने दानशाला संभाल ली / रसोई के कार्य में भी वह सहकार देती थी जिससे किसी भी पदार्थ में जीव जन्तु की हत्या होने न पावे / पानी स्वच्छ तथा कपड़े से छानकर रखवाती थी। कहीं पर गंदापन' न हो एतदर्थ वह जागृत थी / क्योंकि ऐंठवाड में प्रति अन्तमुहुर्त संमूच्छिम जीवों का उत्पादन और हनन होना जैनशासन मानता है, अतः कोई भी नौकर यदि प्रमाद करे तो दमयंती स्वयं अनाज, शाक वगैरह को साफसूफ कर लेती थी। इसप्रकार दानशाला में हजारों आगन्तुकों का मिलन स्वाभाविक बन जाता था, वह सबसे पूछती थी कि, ऐसे रुपवाले इन्सान को तुमने कहीं पर देखा है ? जब सुननेवाले इस बात को इन्कार करते थे तब दमयंती के दुःख को परमात्मा ही जान सकता था। फिर भी दुःखपूर्ण उसने अपनी ड्यूटी को ही धर्म समझकर दिन प्रतिदिन के कार्यों में कभी भी प्रमाद नहीं किया, तथा गरीबों की सेवा में हतोत्साह भी बनने न पाई। - इन्सान के चार प्रकार है / इन्सान जब परमार्थ के प्रति आंखे बंद कर अपने ही स्वार्थों का लक्ष्य रखता है तो उसकी इन्सानियत का विकास कभी भी नहीं हो सकता है, और उसके विना वह चाहे करोड़ाधिपति, लक्षाधिपति, किसी भी प्रांत का या देश का प्रधान मंत्री, सरसेनापति अथवा चाहे कितना ही रुपवान हो या डिग्रीधर हो तो भी हर हालत में इतिहास के पृष्ठों पर अमर नहीं बनता है / संसार में इन्सान मात्र के साथ समाज जुड़ी हुई होने से उसका धर्म एक ही है, और वह इसप्रकार -- को (1) अपने स्वार्थों का बलिदान देकर भी परमार्थ करे। (2) अपने स्वार्थों का नुकसान न होने दें और परमार्थ करे / 81 Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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