Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 89
________________ मात्र को अनंत सुख प्राप्त करवाने में क्षमता रखती है / इस प्रकार पूर्वभव को सम्यक् आराधना के बल से दमयंती ने बहुत से जीवों को उद्धरित किया फलस्वरुप अपनी भावलब्धि को परिपक्व बनाकर अपनी आत्मा को मुक्ति के लायक बना सकी है। कि एक दिन राजसभा में विराजमान विदर्भ देश के राजा भीम ने कर्णोपकर्ण सुना कि, जिस नलराजा से मैंने मेरी पुत्री दमयंती को विवाही थी, वह नलराजा अपने भाई कूबर के साथ जुगार खेलने के दाव में सवकुछ हार भी गया और मेरी पुत्री दमयंती को भी दाव पर रखी और हार गया। छोटे भाई ने नलराजा को अपने देश से प्रवासित किया और दमयंती के साथ वनवास को स्वीकार किया। वन में भटकते महा भयंकर अटवी में प्रविष्ट हुए तदन्तर उनके एक भी समाचार कर्णपर आने नहीं पाये / मालूम नहीं वे दोनों कहां गये ? जीवित है य| अजीवित ? नलराजा जैसे सम्यक् ज्ञानी को जुगार खेलना और अपनी धर्मपत्नी की भी सुधबुध रहने न पावे इतनी हदतक उसमें मस्त बनना, केवल उनके पूर्वोपार्जित अति निकाचित कर्मो का ही मुख्य कारण दिखता है, क्योंकि शास्त्रों में जीव की जैसे अनंत शक्ति का प्रतिपादन है, उसीप्रकार कर्म सत्ता भी अनंतशक्ति सम्पन्न होने से संसार की स्टेज पर कभी पुरुष जितता है, कभी इन्द्रियों की गुलामी, कभी कर्म राजा की शैतानी, कभी माया की मस्तानी जितने पाती है। यही कारण है कि, अरिहंत परमात्माओं ने निरर्थक पापों का अवरोध करने हेतु बारह व्रतों के प्रतिपादन में अनर्थ दंड विरमन तथा भोगोपभोग विरमण नाम के दो व्रतों का विशेष रुप से प्रदान किया है। अज्ञान, मायावी तथा संसारोन्मुखी आत्मा अरिहंतों के व्रतों की मश्करी करता है और भयंकर पापोपार्जन से भारी बनकर रोते चिल्लाते यमराज का मेहमान बनता है, जब सम्यक् ज्ञानी आत्मा अपनी जात को Him Self 8 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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