Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 83
________________ (3) अपने स्वार्थों को साधे परंतु परमार्थ को रत्तिमात्र भी हानि न पहुंचावे / (4) दूसरों को भूखे मारकर भी स्वार्थ में ही दत्तचित रहे / समाज तथा देश के बच्चों को दुध नहीं और अपने कुत्ते को बिस्कुट और दूध देश के बच्चे नंगे फिरे और अपने बच्चों के लिए परदेशी मुलायम वस्त्र व मोटर इत्यादी। इसी से समझना सरल होगा कि ऊपर के चारों प्रकार के इन्सान में से प्रथम और दूसरा इन्सान उत्तमोत्तम है। तीसरा कमीन है और चौथा राक्षस से भी भयंकर है। बेशक ! दमयंती को अपने पति की तपास करने का लक्ष्य था, परंतु जबकि, अपने स्वार्थों के ऊपर निकाचित कर्मों के मेघों का घटा. टोप जोरदार हो तो क्या ? रोने बैठना ? या छाती कुटने बैठना? इतना करने पर भी स्वार्थ की पूर्ति हो जायगी क्या ? इन सब बातों में शास्त्रकारों ने सर्वथा मनाही की है, इसलिए अच्छा तो यही है कि, इन्सान चाहे हजारों संकटों में से पसार हो रहा हो तो भी उसे परमाथ अर्थात् दूसरों की भलाई का ख्याल कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए। दमयंती ने अपने जीवन में से अशुभ तत्व दूर किये है, इसीलिए वह स्वस्थ है, समाधिस्थ है और हास्यशीला बनकर दीन-दुःखी और अनाथों को दालरोटी खिला रही है। चोर को फांसी से छुडवाना एक दिन की बात है, दमयंती दानशाला में थी तव कितने ही सिपाही (पोलिसमेन) एक चोर को पकड़कर शूली के स्थान पर ले जा रहे थे। चोर व्याकुल या, उसकी आंखे रो-रो कर निस्तेज बनी हुई थी, लोही के अभाव में मुंह सफेद बन चुका था। उसके आगे ढोल बज रहा था और उद्घोषणा करते हुए एक सिपाही कह रहा था कि, यह चोर है अतः ऋतुपर्ण राजाने इनको शूली पर चढ़ाने का आदेश दिया है और प्रजा को संदेश दिया है कि, जो भी इन्सान चोरी बदमाशों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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