________________ / मान्य की तथा चोर को मृत्युदंड से मुक्त किया। मृत्यु से मुक्त ना चोर खुश हुआ और दमयंती के चरणों में मस्तक नमाया, माफी गी और प्रतिदिन दमयंती के दर्शन करने का नियम लिया। _____एकबार दमयंती ने चोर से पूछा, तुम कौन हो ? कहां के रहसी हो ? तथा अत्यंत निन्दनीय चौर्यकर्म क्यों कर रहे हो ? उत्तर उसने कहा, मैं तापसपुर नगर के वसंत सार्थवाह के घर पर दासकर्म रता था, मेरा नाम पिंगल था / छोटी उम्र में दुष्ट दुर्जन तथा बद शों के सहवास के कारण मेरे जीवन में चोरी वगैरह करने की खराब दते पड़ी हुई होने से अवसर आनेपर सेठजी के घर पर डाका डाला र आभूषणों की पेटी चुरा ली, परंतु मेरी किस्मत थी कि, राये हुए धन को लेकर जंगल से पसार हो रहा था और लुटेरों ने ने लूट लिया उस समय मेरे मन में कुछ चिनगारी आई और मैंने चा कि, मजदुरी करने पर आराम से भोजन वस्त्र मुझे मिल रहा * फिर मैंने यह पाप कर्म क्यों स्वीकारा ? पापकर्मी आत्मा बिजली चमकारे की तरह क्षणिक सुख का स्वास भले लेता होगा, परंतु सी का भी वह सुख स्थायी बना है क्या? अन्यायोपार्जित धन तथा श्वासघात का धन, इन्सान के घर में सदाचार नहीं परंतु दुराचार आमंत्रण देनेवाला होता है, और दुराचारी आत्मा, रोग, महारोग डप्रेशर, हार्ट अटेक, कैंसर आदि से आक्रान्त बनकर रोते-रोते ही ने पाता है / कितने ही इन्सान इतने भारी कर्मी होते हैं, जिससे पाप फल भी तत्काल भुगतना पड़ता है। मेरी भी यही दशा थी जिससे , तरस, थकान आदि को सहन करता हुआ मैं अचलपुर नगर में या और ऋतपर्ण राजा के यहां दास बनकर समय पसार कर रहा / घर, रसोड़ा और शयन स्थान पर मेरी नियुक्ति होने से मेरा त्रि आना-जाना होता रहता था। फिर भी मेरी अधर्म बुद्धि के रण एक दिन चन्द्रवती के आभूषणों की पेटी मेरी नजर में आई 85 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust