________________ अपने सत्कर्मों की अस्पता के कारण दूसरों की दासीएं वनने पाई है / अपने समान यह स्त्री भी अपने कर्मों के कारण कुछ न कुछ विपत्तिा से ग्रस्त होनी चाहिए क्योंकि इसका चेहरा और आंखे ही मेरी बात का समर्थन कर रही है। इसलिए विपत्ति समापन्न व्यक्ति को देखकर निरर्थक तर्क वितर्क करने की अपेक्षा इसका कुछ भला हो वही सोचना अपनी खानदानी के उपयुक्त है, तो चलो अपने राजमहल में जाकर रानीजी से बातें कर ले, जिससे दयालु रानी इस लड़की पर भी दया करेगी। सबों को यह वात पसंद पड़ी और शीघ्र गति से राजमहल में पहुंचकर रानीजी के पास हाथ जोड़कर खड़ी हुई / रानीजी ने कारण पूछा तव वे कहने लगी। महारानीजी ! आप दयालु हैं, परोपकारी हैं, अच्छे बुरे का विचार भी कर सकती हैं, इसलिए हमारा निवेदन है कि वावडी के एक पत्थर पर देवकन्यासी सुन्दर तथापि यूथ भ्रष्ट हिरणी सी भयभीत एक लड़की बैठी हुई है। बाईजी ! यद्यपि प्रत्येक व्यक्ति अपने किये कर्मों का भुगतान कर रही है तो भी दयालु आत्मा उन पर दया करता ही है, इस समय उस कन्या पर दया करना ही उत्तमोत्तम धर्म है अन्यथा जंगल के चोर डाकू न मालूम उसका कुछ भी विगाड़ देंगे ? वाघ, सिंह, सर्प आदि बढ़े खतरनाक जन्तु भी कदाच उसको परेशान करें या मार डाले / अतः हमारी प्रार्थना है कि, आप उस लड़की को अपनी पुत्री समझकर उसे अभयदान दें। महारानीजी ! आपके घर पर हम नौकरी करने के कारण आपका अनाज हमारे पेट में पड़ा है, अतः हम भी इस राजघराने के सदस्य हैं, 'छोटे मुंह बड़ी बात' कही भी जाय तो आप नाराज न होने पावे, यही हमारी विनंती है / नीतिवचन भी है “सः किंप्रभुः यः हितं न श्रृणुते / ' अपने नौकरों का हित वचन जो मालिक नहीं सुनता है वह | निंदनीय है। 14. अनंत संसार में परिभ्रमण करते हए जीव अपने ही कर्मो का। भुगतते हैं तथा भुगतने के अतिरिक्त किसी के पास भी दूसरा माग 76 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust