Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 75
________________ हाथ मुंह धीकर स्वच्छ जलपान किया और बावडी के ऊपर के पगथियें पर आसीन हुई। शास्त्रवचन है कि, संसार भर में जितने भी मंत्र हैं उनका मूल नमस्कार महामंत्र है / जीवन के अणु-अणु में यदि श्रद्धा, सात्विक भाव तथा विवेक की प्राप्ति हो गई है तो इन्सान अजब-गजब की शक्ति प्राप्त कर सकता है। व्यक्ति विशेष के नाम के मंत्रों में किसी को श्रद्धा होती है तथा किसी को नहीं। जब नमस्कार महामंत्र में गुणों को नमस्कार किया गया है और गुण-गुणी भिन्न नहीं होने से गुणों का नमस्कार गुणी को पहुँच / जाता है बाह्य तथा आन्तर दो प्रकार के शत्रु होते हैं, उसमें से बाह्य शत्रुओं का हनन संभव हो सकता है, जब आन्तर शत्रुओं को मारना, दबाना, हरहालत में भी सरल नहीं है अव: जिन भाग्यशालिओं ने क्रोध, काम, मद, माया, लोभ आदि को ज्ञानपूर्वक की सात्विक तपश्चर्या रुपी आग में समूल जलाकर खाक कर दिया हो उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है, वे अरिहंत, सर्वज्ञ, देवाधिदेव, परमात्मा परमेश्वर आदि के नाम से व्यवह त होने पाते है / जो साकार सयोगी परमात्मा कहलाते हैं, जब वे सिद्धशिला (मोक्ष) प्राप्त कर लेते हैं तब निराकार, अयोगी परमात्मा बनने है। किसी भी जात-पात के भाग्यशाली व्यक्ति परमात्मापद प्राप्त कर सकते हैं। अरिहंत तथा सिद्ध देवतत्व है। __ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति तथा दोइन्द्रिय, त्रीरिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवों की हत्या का सम्पूर्ण त्याग किया हो, तथा मन, वचन काया के असंयम को रोक लिया हो तथा पांचों इन्द्रियों का स्थूल और सूक्ष्म वेग को सर्वथा विरोध किया हो वे मुनि कहलाते हैं, उनमें से विशिष्ट योग क्रिया सम्पन्न उपाध्याय बनते हैं तथा उनमें से भी साम्यभाव, सौम्यभाव तथा संप्रदाय रहित बने हुए आचार्य कहलाते है / ये तीनों गुरुपद के धारक है, तथापि सम्यक् दर्शन, ज्ञान चरित्र तथा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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