Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 36
________________ से भरी हुई तिजोरी में मानवता नहीं रहती है, परंतु सत्य सदाचारमया जीवन, परस्त्री का त्याग, न्यायोपार्जित धन तथा परोपकारिता ही मानवता है, और उसी मानवता में धार्मिकता का आना सुलभ है। किये हुए कर्मों के चक्कर में फंसे हुए नलराजा का रथ वन की तरफ आगे बढ़ रहा है / ऐसी अवस्था में आया हुआ छद्मस्थ इन्सान शोकमग्न बने यह स्वाभाविक है, क्योंकि इन्सान चाहे कितना ही वैभव शाली तथा बुद्धिशाली हो अथवा पुण्यकर्म की चरमसीमा उसके चरणों में समाप्त हो जाती हो, तथापि किये हुए कर्मों का भुगतान तो तीर्थकर चक्रवर्ती, वासुदेव आदि सभी के लिए सर्वथा अनिवार्य है, तो फिर नल दमयंती को वनवास भुगतना पड़े उसमें क्या आश्चर्य ? परमपवित्र मुनिराज को 12 घड़ी तक किया हुआ धर्मान्तराय, नलराजा को भुगतना ही पड़ेगा / 70 कोडाकोडी का मोहनीय कर्म है, जिसमें तीर्थकरों की सात चौवीसी पूर्ण होती है, तव तक किसी भी भव' का किया हुआ पाप वैर, अंतराय आदि कर्मों का उदयकाल कभी भी आ सकता है महावीर स्वामी के जीवात्माने 18 वें भव में शय्यापालक के कान में गरम -सीसा डलवाया था, वह बैर 80 सागरोपम के ऊ पर कितने ही वर्ष 'वितने के बाद तीर्थकर के अवतार में उदय आया और ग्वाले ने परमात्मा के कान में लकड़ी के टुकड़े डाल दिये।। - इस भव से छठे भव में नल दमयंतीने मुनिराज को सताया था - इतना लंबा काल बितने पर भी कर्म का भुगतान अनिवार्य हो रहा है हजारों प्रकार के पुण्यकर्मों के बीच में भी एकाद पाप की बदली जब आती है तब राजा भी रंक सा बन जाता है नलराजा जिस रास्ते से जा रहे थे, वहाँ पांच सौ हाथ प्रमाण एक भारी स्तंभ जमीन में गड़ा हुआ दिखाई दिया / कुतूहलवश रथ से उतरकर नलने उसे जमीन से वाहर निकाला तथा पुनः जैसा था वैसा ही जमीन में गाड़ दिया नाग P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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