Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 63
________________ को विगाड़ने का पाप है, नारी जात की अवहेलना है, ऐसा समझकर जब मुझे कन्या रत्न की प्राप्ति हुई है, तो दूसरे रत्नों के प्रति मैं उदासीन था / नूतन वधू को लेकर मैंने पुनः मेरी नगरी तरफ प्रस्थान किया। मार्ग में कुछ विश्राम लेने के आशय से एक वटवृक्ष के नीचे बैठे और मेरी नजर एक तरफ गई, जहाँ पर पंचमहाव्रतधारी गुरु अपने शिष्यों के साथ विराजमान थे। मुझे बड़ी खुशी हुई कि, संसार के मायाजाल में कैद होने के समय में भी उत्तमोत्तम मंगल माल देनेवाले गुरु महाराज के दर्शन हुए / इन पवित्र भाव के साथ मैंने गुरुदेव को वन्दन किया। गुरुजीने धर्मलाभ के अशोर्वादपूर्वक कहा 'हे भाग्यवंतों !' . . " मनुष्य का शरीर कांच की बँगड़ी जैसा क्षणभंगुर है". - "युवावस्था आकाश के बादल जैसी कुछसमय के लिये है।" है / " श्रीमंताई विषधर नाग के फण जैसी है।" अतः मिले हुए भाडुती पदार्थों से जीवन को रंगराग में, विषय विलास में, पापोपार्जन में तथा माया प्रपंच में आसक्त बनाने की अपेक्षा, आत्मसमाधि प्राप्त करने में लगाना श्रेयस्कर है। किराये से प्राप्त किये भौतिक पदार्थ पुण्याधीन होने से उसपर विश्वास करके जिन्दगी को बर्बाद करना बुरा है, क्योंकि पुण्य की रेखा ललाट पर कन आती है और जाती हैं, उसके उदाहरण संसार में एक नहीं परंतु अनेक है / राजा रावण, दुर्योधन, शूर्पनखा, कंस, कर्ण, द्रोणाचार्य, मम्मण और धवलसेट आदि सबके सब रोते-रोते संसार से चले गये हैं, जिनका नामोच्चारण भी प्रातःकाल में करना अहोरात्र बिगाड़ने जैसा है / इसप्रकार के देशना सुनने के बाद मैंने गुरुदेव से पूछा 'हे प्रभो ! मेरा आयुष्य कितना है ?' तब उपयोग देकर आचार्यश्री ने कहा 'वत्स तेरा आयुष्ट केवल पांच दिन का ही है / दिव्यज्ञानी, भूत, भविष्य के ज्ञाता,पंचमहा व्रतधारी का इतना स्पष्ट उत्तर सुनकर मुझे आनन्द भी हुआ और शाम 62 P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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