Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 68
________________ पापाचारण को संयमित करने हेतु तथा समाज में सुख शांति तथा समाधि की प्राप्ति हेतु ‘अतिथिसँविभाग' नाम के व्रत को उपदिष्ट किया और कहा कि, 'हे श्रीमंतों !' यदि तुम्हें सुखपूर्वक श्वास लेना हो तो गरीबों को रोटी में से रोटी दो, पानी में से पानी दो, अथवा तुम्हारे पास जो भी हो उसका विभाग करके दूसरों को देना, अन्यथा गरीब वर्ग तुम्हारा शत्रु बनेगा, मारेगा काटेगा और लुटपाट कर तुम्हें हैरान परेशान करेगा / इन्सान जब दूसरे इन्सान का अपमान, तिरस्कार करता है तब वह भी प्रकारान्तर से बदला लिए बिना छोड़ता नहीं है / इत्यादि विचारों से तीर्थकरों के धर्म के प्रति विश्वासु वनी हुई दमयंती ने खूबखूब निर्भय बनकर राक्षसी से कहा, 'हे राक्षसी !' मेरे शरीर का भक्षण करके यदि तृप्ति होती हो तो इससे बढिया दूसरा क्या हो सकता है ? तथापि जरा समझले काम, क्रोध, लोभ, वैर, विरोध आदि राजसिक भाव तथा मर्यादातीत विषय वासना, शरावपान, मांसभोजन आदि तामसिक भाव से युक्त जिनका जीवन होता है तथा मरते समय उन भावों की अतृप्त वासना रह गई हो वे जीवात्मा मरकर व्यंतर बनते हैं, जहां पर यद्यपि अच्छे से अच्छे देवलोक के योग्य भौतिक साधन विद्यमान है, तथापि पूर्वभवीय वासनाएँ उनको सताती होने से वे व्यंतर देव होने पर भी इस प्रकार गंदी चेष्टा किया करते हैं। शास्त्रवचन है, देवयोनि के देवों से भी अपेक्षा कृत सात्विक मनुष्य, अहिंसक, सत्यवादी तथा ब्रह्मप्रधान होने में उनकी मंत्र शक्ति ज्यादा बलवती होती है अथवा उनके जीवन की प्रत्येक चेष्टाएँ शक्तिमय होती है। कोई भी देव' सात्विक मनुष्य का कुछ भी नुकसान करने में समर्थ नहीं होता है / इतना होने पर भी मैं चैलेंज देती हूँ कि तुम तुम्हारी शक्ति का प्रयोग मेरे पर बेधड़क कर सकती हो तदन्तर मैं तुम्हें मेरी सात्विकता का परिचय दिखाऊँगी / दमयंती के इन शब्दों से राक्षसी हतप्रभ तो हो चुकी थी, फिर - भी दमयंती का भक्षण करने का प्रयोग उसने किया, परंतु आग को P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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