Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 65
________________ थी। उसकी आत्मा, पति की प्राप्ति कब होगी ? कैसे होगी? इसकी चिता में है। जिसके जीवन में ध्येय निष्ठता होती है, वह चाहे दूसरे हजारों कार्य कर ले तो भी अपने लक्ष्य को चुकते नहीं है। दमयंती के श्वासोश्वास में, ध्यान में, उपवास में, पारणे में, नलराजा की तस्वीर होने से अपने पति का याद आना स्वाभाविक है / एक दिन की बात है, एक मुसाफिर दमयंती से परोक्ष रहकर जोर जोर से . बोला, 'हे दमयंती ! मैंने मेरी आँखों से तेरे पति नल को अमुक स्थान में देखा है, "यदि तुई पति से मिलने की इच्छा हो तो शीघ्रता करो और अमुक दिशा तरप प्रयाण करो।" ये शब्द कान में पड़ते ही मानो, अमृत के भोजन से जे तृप्ति होती है, उससे भी ज्यादा दमयंती को हुई, उसके शरीर के रोमांच खड़े हुए, आँखों में चंचलता आई तथा अपने पति को देखने के तथा मिलने की उत्सुकता बढ़ी। शास्त्रकारों ने इसी को सात्विक प्रेम कहा है, जिसमें किसी भी प्रकार का छल तथा बदले की चाहना नहीं रहती है। जब आसुरी प्रेम में स्वार्थ रहता है, जभी अवसर आने पर एक इन्सान दूसरे इन्सान का शत्रु भी बन जाता है / सात्विक प्रेम में स्वार्थ नहीं लुच्चाई नहीं, धूर्तता नहीं, भाषा की सफाई नहीं केवल आत्मसमर्पण के अलावा दूसरा कुछ भी नहीं, चाहे परमात्मा हो या पति हो दोनों ही आराध्य होने से जिसके मन में सात्विक भाव होंगे उसका भवोतीर्ण दुर्लभ नहीं है / आत्मोत्थान में भी समर्पण भाव की आवश्यकता रहती है। शब्द श्रवण होते ही प्रसन्नचित्त दमयंती स्वागत बोली “आज मुझे कौन बधाई दे रहा है" फिर प्रगट बोली, भाई ! तुम मेरे सामने आओ और कहो कि, 'नलराजा कहाँ पर है ? कैसे हैं ? क्या कर रह हैं ? किस तरफ जा रहे हैं? इस प्रकार दो तीन बार बोली परत P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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