Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 44
________________ सोचकर प्रातःकाल होते ही नलराजा ने अश्रुपूर्ण आँखों से दमयंती की तरफ देखे बिना ही वन की तरफ आगे बढ़ गये / . दमयंती को आया हुआ स्वप्न विकसित कमलों के सुगंधपूर्ण प्रभात का पवन जब चल रहा था तब दमयंती ने एक स्वप्न देखा कि, " मैं आम के झाड पर आरुढ होकर पके हुए आम खा रही हुँ भ्रमरों का संगीत सुन रही हूँ, परंतु एक वनहस्तीने आकर उस वृक्ष को मूल से गिरा दिया और मैं पक्षी के अंडे के समान नीचे पड़ी" स्वप्नांतर जागृत हुई दमयंतीने चारों तरफ नजर करने पर भी अपने पति नल को नहीं देखा, तब अनिष्ट, प्राणोंपघाती, अमंगल की शंका से बेचैन बनकर बोली, "ऐसे भयंकर वन में मेरे प्राणनाथ ने भी मेरा त्याग कर दिया" अथवा दयामय नल ऐसा अपकृत्य करे वह मानने में नहीं आता है, कदाच प्रातः समय में हाथपैर तथा मुंह प्रक्षालन के लिए गये होंगे ? अथवा रुपलुब्ध किसी विद्याधर कन्या ने मेरे नाथ का अपहरण किया होगा ? अथवा क्रीडा करन अन्यत्र गये हों और कुछ हार भी गये हो तो वहाँ के व्यवस्थापकों ने उनको रोक लिया होगा? इस प्रकार चितासागर में प्रविष्ट दसो दिशाओं को, पर्वतों को, नदी-नालों को झाड़ तथा डालों को देख देखकर थक जाने के बाद अपने स्वप्नार्थ का विचार करने लगी, जिस वनहस्ती न आम वृक्ष को निर्मुल किया था उसका फल हमारे भाग्य ने हमको राज्य म्रष्ट कर वनवास दिया। मैं जो वृक्ष से गिर गई थी उसके फल का अनुमान है कि, मेरे पतिने भी मेरा त्याग कर दिया है। जिससे उनके दर्शन भी मेरे भाग्य में दुर्लभ बन गया है इस प्रकार स्वप्नार्थ का निर्णय = कर पति के वियोग में दमयंती संतप्त बनी और मुक्तकंठ से रो पड़ी, - क्योंकि स्त्री चाहे कितने ही दुःखों को सहन कर सकती है, परंतु पति वियोग उसके लिए दुःसहय बन जाता है / जीवन का उपार्जित धैर्य भी = चला जाता है, ऐसी परिस्थिति में वह बोली, 'हे नाथ आपने मेरा त्याग P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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