Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 54
________________ के सब पानी से भर गये और एक के पीछे एक झोपडे टूटकर, पानी के प्रवाह में बहने लगे, भगवे वस्त्र, त्रिदंड, कमण्डल खडाऊ, रूद्राक्षमाला, व्याघ्रचर्म आदि को बहते हए सभीने देखा / तब तापस बड़े चिन्तित हुए, घबराने लगे, रोने लगे, दौड़धूप करने लगे परंतु विधि की लील, के आगे वे सब कुछ भी करने में समर्थ नहीं बने / बेशक ! तापस, जीवन भर के ब्रह्मचारी थे, तपस्वी थे, शीर्षासन से ध्यान करते थे। जटाजूट बढ़ाये हुए थे, साथ-साथ भांग, गांजा चरस की चिलमें फुकने में वे समाधि की प्राप्ति जैसी मौज लूटनेवाले थे, परंतु समझना होगा कि, धर्म तथा धार्मिकता का संबंध शरीर की क्रियाओं के साथ नहीं, परंतु आत्मा के साथ उनका सीधा संबंध है / जब तक सम्यग्ज्ञानपूर्वक का सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं होता है, तब तक सम्यक चरित्र भी अत्यंत दुर्लभ भी बन जाता है। ऐसी परिस्थती में आत्मशुद्धि के लक्ष्य बिना कि, | एक भी बाह्य क्रिया अपना प्रभाव बतला न सके इसमें क्या आश्चर्य ? / भाग, गांजा, चरस तथा स्नानादि अनुष्ठानों से धर्म की उत्पत्ति नहीं होती है, परंतु नये पाप के द्वार बंद करना और जूने पापों को धोने के लिए पाप, और तामस तथा राजस भाव बिना की तपश्चर्या करना रूप सम्यग् चरित्र ही धर्म की उत्पत्ति का मौलिक कारण है. जिससे अनुप्ठानों में साफल्य भी प्राप्त होगा तथा जीवन में चमत्कार की वृद्धि होगी। अन्यथा किंकर्तव्यमढ बने हए तापस अपनी ही रक्षा में व्यग्र वनने पावे उसमें आश्चर्य क्या ? इस प्रकार के भयग्रस्त तापसों को देखकर दयामूर्ति दमयंती गुफा से बाहर आई और वर्षाऋतु के तांडव को प्रत्यक्ष कर बोली, तापसों! घबराओ मत, घबराओ मत ! ऐसा कहकर दमयंतीने हाथ में जल लिया और तापसों के कुंड पर्यन्त की अवधि का संकल्प कर सती धुरंधरा दमयंती ने मेघकूमारों को संबोधकर कहा. हे देवों ! यदि मेरे मन में नलराजा को छोड़कर दूसरा पुरुष स्वप्न में भी न आया हो तो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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