Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 55
________________ तथा मेरा मन आर्हत धर्म के रंग में रंगा हुआ हो तो तापसों के आश्रम की मर्यादा छोड़कर मेघ बरसे, अर्थात् अतिवृष्टि समाप्त हो जाय / और हाथ का जल नीचे फेंका और बारिश बंद हुई, नदी नाले शांत पड़ेआश्रमवासिओं का भय खत्म हुआ, हजारों तापसों तथा सेठ ने यह प्रत्यक्ष चमत्कार देखा और उनके मन में एक चिनगारी पैदा हुई कि. 'दमयंती, देवस्वरुप है, क्योंकि मानवस्त्रीमें यह रुप और प्रत्यक्ष की हुई शक्ति संभावित नहीं है, कदाच मनुष्यस्त्री रही हो तो ब्रह्मचर्य धर्म सम्पन्न महासती जरुर है, अन्यथा आंखों के सामने सर्वथा अननुभूत चमत्कार हुआ है उसमें शास्त्रों के पाने देखने से क्या मतलब ? शास्त्र वचन भी है कि, देवों तथा इन्द्र की अपेक्षा मनुष्य ज्यादा शक्तिशाली होता है बेशक ! वह पूर्ण ब्रह्मचारी हो, पतिव्रता हो, जीव मात्र के प्रति अहिंसक भाव हो, सत्यभाषी हो तो देवयोनि के देव भी उनके चरणो में सिर झुकाकर दासत्य स्वीकार करते हैं। __ उपरोक्त सात्विक भाव तापसों के मन में बड़ी नेजी से बढ़ रहा था, उसी समय स्वच्छ बुद्धिनिधान वसंत सार्थवाह ने दमयंती से पूछा, हे कल्याणी ! तुम्हारे सामने कौन से परमात्मा है ? जिसकी पूजा तुम मन वचन तथा काया की एकाग्रता से कर रही हो / दमयंती ने कहा, 'हे सार्थवाह / ये देव अर्हन्' परमेश्वर त्रिलोकीनाथ तथा जो कोई भी इनकी आराधना करेगा उनके लिए कल्पवृक्ष के समान शांतिनाथ परमात्मा है,जो इस चौवीसी के सोलहवें तीर्थकर है। इन देवाधिदेव की आराधना करती हुई मैं, इस भयंकर वन में सर्वथा-अर्थात् रात दिवस, स्वप्न तथा जागृत अवस्था में भी निर्भय हूँ इनके प्रभाव से बाघ, सिंह, अजगर, व्यंतर भूत, प्रेत, राक्षस आदि मेरा कुछ भी बिगाड़ने में समर्थ नहीं है। इस प्रकार अरिहंत प्रभु के स्वरुप को कहकर उनके प्ररुपित कथित धर्म के रहस्य को समझाती हुई, महासती ने कहा "जहां पर चाहे जैसी भी मानसिक, वाचिक तथा कायिक क्रियाओं से 4 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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