Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 46
________________ तरह दमयंती तेजगति से आगे बढ़ रही थी। सतीत्व के प्रभाव से सार्थवाह का रक्षण का - वन की एक तरफ बड़ा सार्थवाह अपने सैकड़ों हजारों आदमियों के साथ पड़ाव डालकर स्थित था जिसको दमयंती ने देखा और सोचा कि, यदि मुझे भी कोई साथ मिल जाय तो इस भयानक वन से मेरा छुटकारा हो जायेगा / ऐसा सोच ही रही थी उतने में चोरों का टोला सेठ। की छावनी पर लूटने के इरादे से टूट पड़ा। पड़ाव से हाहाकर मचा, जिसको जो रास्ता मिला वह उसी तरफ दौडधूप करने लगा / सार्थवाह भी बड़ा चिंतित था, क्योंकि डाकुओं के पास शस्त्र सामग्री ज्यादा थी दया से भरी हुई दमयंती अपनी आँखों के सामने किसी की दुर्दशा कैसे देख सकती है ? तब वह दौड़ी और भागते हुए इन्सानों को कहा, आप मत भागे मैं आपकी रक्षा करूँगी ऐसा कहकर दमयंती ने डाकुओंसे कहा, तुम लोग अभी के अभी चले जाओ, भाग जाओ, जिस सार्थवाह की मैं रक्षा कर रही हूँ, उसको लूटने का साहस तुम्हारे लिएआपत्ति खडी कर देगा / इसप्रकार दमयंती की अवगणना करते हुए डाकु लोगों ने -सार्थवाह को लूटने का कार्य जव वंद नहीं किया तब दमयंतो ने जोर से हुंकार किया जो सिंहनाद के समान होता है / जिसको सुनकर रणमैदान में खेलनेवाले योद्धा. भी डर जाते हैं, तो साधारण इन्सान का क्या पूछ ना ? डाकुओं ने सोचा कि, यह स्त्री, सामान्य नहीं है क्योकि - जिसकी आवाज में इतनी ताकत है तो समयपर यह क्या नहीं कर सकती है। डाकू भागने लगे और सार्थवाह (सेठ) निर्भय बना / जिन डाकुओ से अपनी तथा साथवालों की रक्षा करना भी मुश्किल बन गया था, उसे अपनी हुँकार मात्र से इस स्त्री ने सरल बना दिया, तब प्रत्यक्ष बात पर दूसरे तर्क करने निरर्थक है / यह समझकर दयापूर्ण, धर्मप्रेमी सार्थवाह दमयंती के पास आया और जय जिनेंद्र पूर्वक हाथजोड़कर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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