Book Title: Nal Damayanti
Author(s): Purnanandvijay
Publisher: Purnanandvijay

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Page 45
________________ क्यों किया ? क्या आपके लिए भारभूत थी ? यदि आप मेरा मजाक करने हेतु कहीं पर चले गये हो तो आप मेरे पर कृपाकर के प्रकाश में पधारिये क्योंकि आत्मीयजन के साथ प्राणघातक मजाक या मश्करी सज्जनों के लिए त्याज्य मानी गई है / वन देवदेविओं से हाथ जोड़कर बोली, 'हे क्षेत्र देवों तथा देविओं ! मेरे पर प्रसन्न होकर मेरे पति को यदि तुमने छुपा दिया हो तो उनको प्रकाशित करें मेरा मार्ग सरल वने अथवा मुझे उनके पास ले जाकर छोड़ दो / अथवा हे हृदय / तू स्वयं ही चीभडे के माफिक टूट फूट क्यों नहीं जाता है, जिससे मेरे दुःखों की निवृत्ति हो जाय / इस रुदन करती दमयंती को जल में स्थल में, छाया में तथा धूप में ज्वर से पीड़ित इन्सान के माफिक शांति असंभव रही है / यूथ भ्रष्ट हरिणी के समान इधर उधर भटकती उसने अपने वस्त्र के अंचल पर लिखे हुए अक्षर देखे, पढे और कुछ प्रसन्न होकर विचारने लगी, 'मैं जरूर अपने पति के मनरुपी तलाव की हंसी हूँ अन्यथा मुझे इतनी भी आज्ञा का प्रसाद देने की उदारता वे कैसे कर पाते, अव मेरा धर्म एक ही है कि इस आदेश को गुरु आदेश से भी ज्यादा मानूं , क्योंकि स्त्री के लिए पति परमेश्वर है, गुरु है, पूज्य तथा सत्करणीय है / अतः उनकी आज्ञा के अनुसार मुझे मेरे पिता के घरपर ही जाना उचित है / पति के लिखे अक्षरों में पतिभाव की. स्थापना करती दमयंती वटवृक्ष के मार्ग से आगे बढ़ने लगी / मानसिक जीवन के अणु अणु में अरिहंत का वास, सिद्ध चक्र भगवंत की श्रद्धा तथा गुरुदेवों का बहुमान था। इसी कारण से मार्ग में आते हुए बाघ, सिंह, अजगर भी शांत हो जाते थे, दरों में रहे हए सर्प भी दमयंती को कुछ भी कर न पाये, वन हाथी भी शांत थे तथा और भी उपद्रव सती को सताने में समर्थ नहीं थे। वाल बिखरे हुए थे / पसीना आ रहा था। पैरों में कांटे चुभने के कारण रक्तधारा भी वह रही थी। शरीर रास्ते की धल तथा रेत से भर गया था, इसलिए दावानल से त्रस्त हस्तिना का YY P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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